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जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकर
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(15) धर्मनाथ
पन्द्रहवें तीर्थकर "धर्मनाथ" को रत्नपुर के महाप्रतापी राजा भानु की रानी सुव्रता ने 16 शुभ स्वप्नों के पश्चात् माघ-शुक्ला-तृतीया को जन्म दिया। गर्भकाल में माताश्री धर्म-साधन के उत्तम दोहद उत्पन्न होते रहे, अतः तद्नुसार बालक का नामकरण "धर्मनाथ" किया गया। सांसारिक बन्धनों में असीम-पीड़ा का अनुभव कर इन्होंने माघ-शुक्ल-त्रयोदशी को दीक्षा ग्रहण कर साधना का मार्ग अपनाया। अनेक परीषहों को सहन करते हुए पौष-शुक्ल-पूर्णिमा को घातिया कर्मों का क्षय कर केवलज्ञान की प्राप्ति की। अन्ततः ज्येष्ठ शुक्ल-पंचमी को सम्मेदशिखर से "धर्मनाथ" ने निर्वाण पद प्राप्त किया। (16) शान्तिनाथ
"शान्तिनाथ" सोलहवें तीर्थकर हुए। इनका जन्म हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन की रानी अचिरा की कुक्षि से भाद्रपद-कृष्ण-सप्तमी को हुआ। इनके आविर्भाव से महामारी का भयंकर प्रकोप शान्त हुआ, तद्नुसार ही बालक का नाम "शांतिनाथ" रखा गयाः
"गठभत्थेण य भगवया सब्वदेसं संतीसमुप्पणा त्ति। काऊण सन्सिंतिणां अस्मापितीहि कयं।।13 अनेक राजकन्याओं के साथ इनका विवाह हुआ,
"ततो सो जोव्वणं पत्तो पणुवीसवाससतृस्साणीकुमारकालं गमेई।"14 किन्तु वैभवशाली जीवन एवं राज्य को छोड़कर (त्याग कर) शांतिनाथ, दीक्षा की ओर उन्मुख हुए। दीक्षा ग्रहण कर कठोर साधना करते हुए इन्होंने पौष-शुक्ल-नवमी को "केवलज्ञान" प्राप्त किया। अन्ततः ज्येष्ठ कृष्ण-त्रयोदशी को सम्मदेशिखर पर "शान्तिनाथ" को निर्वाण लाभ मिला। (17) कुंथुनाथ
सत्रहवें तीर्थकर, "कुंथुनाथ", हस्तिनापुर के राजा वसु की धर्मपत्नी श्रीदेवी की कुक्षि से श्रावण वदी नवमी को पैदा हुए। गर्भकाल में माताश्री ने कुंथु नाम के रत्नों की राशि देखी, अतः बालक का नाम "कुंथुनाथ" रखा गया। युवावस्था में विवाह एवं राज्य भोग करते हुए इन्होंने चक्रवर्ती पद प्राप्त किया किन्तु सांसारिक सुख में अरुचि उत्पन्न हो जाने से "कुंथुनाथ" ने वैशाख-कृष्ण-पंचमी को दीक्षा ग्रहण कर ली। सतत् साधना में निमग्न चैत्र-शुक्ला-तृतीया के दिन इन्होंने "केवलज्ञान" प्राप्त किया। यही नहीं वरन् "चतुर्विध-संघ" की स्थापना कर भाव-तीर्थकर कहलाए। अन्ततः वैशाख-कृष्ण-प्रतिपदा को कृतिका-नक्षत्र में सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर "प्रभु" सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त हुए। (18) अरनाथ
"अरनाथ" अठारहवें तीर्थकर हुए। हस्तिनापुर-नरेश, सुदर्शन की रानी महादेवी ने 16 शुभ स्वप्नों के पश्चात् मृगशिर-शुक्ला-दशमी. को रेवती-नक्षत्र में इस पुत्र रत्न को
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