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________________ 348 स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ मुनियों के साथ शुक्लध्यान के अन्तिम चरण में अयोगी दशा को प्राप्त कर, श्रावण शुक्ल तृतीया को सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त हुए। ( 12 ) वासुपूज्य बारहवें तीर्थंकर “वासुपूज्य" को चम्पानगरी के राजा 'वसुपूज्य" की रानी जयादेवी ने 16 शुभ स्वपनों के बाद फाल्गुन-कृष्ण चतुदर्शी को जन्म दिया। पिताजी के अनुरूप इनका नामकरण किया गया। "वासुपूज्य" को कुछ आचार्य अविवाहित मानते हैं। फाल्गुन कृष्ण अमावस्या को दीक्षा ग्रहण कर साधना में निरत रहे, फिर माघ शुक्ला-द्वितीया को इन्होंने "केवलज्ञान" प्राप्त किया। अन्ततः आषाढ़ शुक्ला चतुदर्शी को "उत्तरा भाद्रपद-नक्षत्र" में " चम्पा" सम्प्रति मन्दार पर्वत (चम्पा का उपवन) में तीर्थंकर वासुपूज्य ने निर्वाण प्राप्त किया। ( 13 ) विमलनाथ विमलनाथ तेरहवें तीर्थंकर हैं। कपिलपुर के राजा कृतवर्मा की रानी पूयामा माघ शुक्ला तृतीया को इन्हें जन्म दिया। गर्भकाल में माता श्री के तन-मन की निर्मलता के कारण इनका नाम "विमलनाथ" रखा गयाः " "गर्भस्थे जननी तस्मिन् विमलाभादजायत । ततो विमल इत्याख्यां, तस्य चक्रे पिता स्वयम् ।।' 1710 युवावस्था ' में वैवाहिक और राज्य-सुख भोगने के बाद विमलनाथ ने विरक्ति भाव से दीक्षा ग्रहण कर ली। सतत् साधना में तल्लीन रहते हुए पौष - शुक्ला - षष्ठी को "केवलज्ञान" प्राप्त कर चतुर्विध-संघ की स्थापना करके भाव तीर्थकर की गरिमा से मण्डित हुए। अन्ततः छः सौ (600) साधुओं के साथ समाधि लेकर आषाढ़ - कृष्ण - सप्तमी को विमलनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया। ( 14 ) अनन्तनाथ अनन्तनाथ चौदहवें तीर्थंकर हुए। ये अयोध्या नरेश सिंहसेन की धर्मपत्नी सुयशा की कुक्षि से वैशाख - कृष्ण त्रयोदशी को पैदा हुए। गर्भावस्था में ही अद्भुत परिणाम के कारण इनका नाम अनन्तनाथ" रखा गयाः Jain Education International "गर्भस्थेऽस्मिन् जितं विन्नानन्तं पश्बलं यतः । ततश्चहेनन्त जिदित्याख्यां परमेशितुः ।।'' " गणभत्थे य भगवम्मि पिउणा " अजन्तं" परवलं जियति तओ । 12 जथत्थं अणन्तहजिणो त्ति नामं कयं युवणगुरुणो ।। वैवाहिक सुख और राज्य सुख भोगने के पश्चात् अनन्तनाथ ने दीक्षा ग्रहण कर ली। सतत् साधना में लीन रहते हुए वैशाख कृष्ण चतुर्दशी को "केवलज्ञान" की उपलब्धि की । अनन्तनाथ चतुर्विध संघ की स्थापना करके भाव - तीर्थंकर कहलाए । अन्ततः एक हजार साधुओं के साथ एक मास का अनशन कर चैत्र शुक्ला - पंचमी को सकल कर्मों को क्षय कर सिद्ध-बुद्ध एवं मुक्त हुए। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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