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________________ 340 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ अयोध्या नगरी के राजा त्रिदशंजय की रानी इन्दुरेखा थी। उनके जितशत्रु नामक पुत्र था। जितशत्र के साथ पोदनपुर नरेश व्यानन्द की पुत्री विजया का विवाह हुआ था। द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ इन्हीं के कुलदीपक पुत्र थे। भगवान के पितामह त्रिदशंजय ने मुनिदीक्षा ले ली और कैलाश पर्वत से मुक्त हुए। हरिषेण चक्रवर्ती का पुत्र हरिवाहन था। उसने कैलाश पर्वत पर दीक्षा ली और वहीं से निर्वाण प्राप्त किया। हरिवाहन दुद्धर बहु धरहु। मुनि हरिषेण अंग तउ चरिउ। घातिचउक्क कम्म खऊ कियउ। केवलणाण उदय तब हयऊ।। निरु सचराचरु पेखिउ लोउ। पुणि तिणिजाय दियउ निरुजोउ।। अन्त यालि संन्यास करेय। अट्ठसिद्धि गुणि हियऊ धरेउ।। सुद्ध समाधि चेयविय पाण। निरुवम सुह पत्तउ निव्वाण।। __ - कवि शंकरकृत हरिषेणचरित, 707-709, (रचनाकाल 1526) विविध तीर्थकल्प में जिनप्रभसूरि ने 'अष्टापदकल्प' नामक कल्प की रचना की है। उसमें लिखा है -इन्द्र ने अष्टापद पर रत्नत्रय के प्रतीक तीन स्तूप बनाए। -भरत चक्रवर्ती ने यहाँ चार सिंहनिषद्या बनवायीं, जिनमें सिद्ध प्रतिमायें विराजमान करायीं। उन्होंने यहाँ चौबीस तीर्थंकरों और निन्यानवे भाईयों के स्तूप भी बनवाए थे। भगवान ऋषभदेव के मोक्ष जाने पर उनकी चिता देवों ने पूर्व दिशा में बनाई। भगवान के साथ जो मुनि मोक्ष गए थे, उनमें जो इक्ष्वाकुवंशी थे, उनकी चिता दक्षिण दिशा में तथा शेष मुनियों की चिता पश्चिम दिशा में बनाई गई। बाद में तीनों दिशाओं में चिताओं के स्थान पर देवों ने तीन स्तूपों की रचना की। अनेक जैन ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि कैलाश पर भरत चक्रवर्ती तथा अन्य अनेक राजाओं ने रत्न प्रतिमायें स्थापित करायी थीं। यथा कैलाशशखरे रम्ये यथा भरतचक्रिणा। स्थापिताः प्रतिमा वा जिनायतनपंक्तिषु।। तथा सूर्यप्रभेणाऽपि ................................। -हरिषेण कथाकोष - 56/5. ये पर्वत पंचम काल में नष्ट हो गए, इस प्रकार की निश्चित सूचना भविष्यवाणी के रूप में प्राप्त होती है कैलाशे पर्वते सन्ति भवनानि जिनेशिनां। चतुर्विंशति संख्यानि कृतानि मणिकाञ्चनैः।। सुरासुर नराधीशैर्वन्दितानि दिवानिशम्। यास्यन्ति दु:षमे काले नाशं तस्करादिभिः।। -हरिषेण कृत बृहत्कथाकोष- 119 अर्थात् कैलाश पर्वत पर मणि रत्नों के बने हुए तीर्थंकरों के चौबीस भवन हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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