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तीर्थंकर ऋषभदेव का निर्वाण स्थल
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बोधप्राभृत की टीका में श्रुतसागर ने तीर्थंकर के पञ्चकल्याणक स्थानों में कैलाशाष्टापद को गिनाया है। पन्द्रहवीं शताब्दी के गुणकीर्ति ने अपनी मराठी तीर्थवन्दना में कहा है
कविलास पर्वति श्री युगादिदेव आदीश्वर सिद्ध जाले। मेघराज ने गुजराती तीर्थवन्दना में कैलाशपर्वत का स्मरण किया है
कइलास आदिजिनंद वासपुज्ज चंपापुरीए।
सिद्धवीरजिनंद नगर कहु पावापुरीए ।।2।। सोलहवीं सदी के मध्य होने वाले सुमतिसागर ने जम्बूद्वीप जयमाल में अष्टापद का उल्लेख किया है
__ अष्टापद संमेदगिरि चंपापुरि पावापुरि महामुनि जिन कहिया। केवलज्ञान सुचंद्र प्रकाशे जे लहिया।
इसी प्रकार ज्ञानसागर, जयसागर, चिमणा पंडित, मेरुचन्द्र, राघव, पंडित दिलसुख, कवीन्द्र सेवक आदि ने कैलाश पर्वत या अष्टापद का उल्लेख किया है।
नागकुमार, व्याल, महाव्याल आदि का निर्वाण यहीं हआ। भैया भगवतीदास ने निर्वाण काण्ड में कहा है
व्याल महाव्याल मुनि दोय नागकुमार मिले त्रय होय।
श्री अष्टापद मुक्ति मझार ते वन्दों नित सुरत सँभार।। वर्तमान में कैलाश पर्वत की केवल प्रदक्षिणा ही की जा सकती है। उसपर चढ़ना सम्भव नहीं. क्योंकि आठों दिशाओं में इसके तट काटे हुए से कोई दो हजार फीट ऊंचं हैं। इस पर्वत के समीप सुप्रसिद्ध मान सरोवर तथा रावण ह्रद नामक विशाल झीले हैं।
कैलाश पर्वत से सम्बंधित अनेक संस्मरण जैन पुराणों में प्राप्त होते हैं। तृतीय काल के अन्त में नाभिराय के पुत्र भगवान ऋषभदेव विहार करते हुए अपनी इच्छा से पृथ्वी के मुकुटभूत कैलाश पर्वत पर आकर विराजमान हुए। वहां पर आसीन हुए उन भगवान ऋषभेदव की देवी ने भक्ति पूर्वक पूजा की तथा जुड़े हुए हाथों को मुकुट से लगाकर स्तुति की। उसी पर्वत पर त्रिजगद्गुरु भगवान को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई, उससे हर्षित होकर इन्द्र ने वहाँ समवसरण की रचना करायी। महाराज भरत ने मनुष्य और देवों से पूजित उन जिनेन्द्रदेव की अर्थ से भरे हुए अनेक स्तोत्रों द्वारा पूजा की तथा विनय से नत होकर अपने योग्य स्थान पर बैठ गए। उन्होंने प्रश्न किया कि आपके समान और कितने सर्वज्ञ-तीर्थंकर होंगे? मेरे समान कितने चक्रवर्ती होंगे? कितने नारायण, कितने बलभद्र और कितने उनके शत्रु प्रतिनारायण होंगे? उनका अतीत चरित्र कैसा था? वर्तमान में और भविष्य में कैसा होगा? वे सब किस नाम के धारक होंगे? किस-किस गोत्र में उत्पन्न होंगे? उनके सहोदर कौन-कौन होंगे? उनके क्या-क्या लक्षण होंगे? वे किस आकार के धारक होंगे? उनके क्या-क्या आभूषण और अस्त्र होंगे? उनकी आयु और शरीर का प्रमाण क्या होगा? एक-दूसरे में कितना अन्तर होगा? किस युग में कितने युगों के अंश होते हैं? एक युग
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