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प्राकृत शोध संस्थान के उदय एवं विकास की गौरव गाथा
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वैचारिक उदारता के फलस्वरूप तत्कालीन बिहार सरकार ने दरभंगा में वैदिक और संस्कृत विद्यापीठ, नालन्दा में पाली और बौद्ध धर्म विषयक विद्यापीठ की स्थापना की और उसी क्रम में वैशाली में प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान की स्थापना की, जिसका शिलान्यास महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी द्वारा दिनांक 23.04.1956 को किया गया। इस प्रकार वैदिक, बौद्ध और जैन धर्म विषयक तीन शोध संस्थान बिहार राज्य में कार्यरत हैं। इनकी स्थापना का श्रेय तत्कालीन राज्यपाल महामहिम आर0 आर0 दिवाकर, मुख्यमंत्री, डॉ. श्रीकृष्ण सिंह एवं शिक्षा मंत्री, आचार्य श्री बदरीनाथ वर्मा की भारतीय दर्शनों के प्रति अगाध निष्ठा और सांस्कृतिक विकास की रुचि को है। इन विद्यापीठों में उच्च स्तरीय अध्यापन और अनुसंधान कार्य, शोध पुस्तकों का प्रकाशन और विद्वद्गोष्ठियाँ आदि कार्य सम्पन्न होते हैं। प्राकृत शोध संस्थान की स्थापना में वैशाली-संघ की भूमिकाः
प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली, वासोकुण्ड की स्थापना की पृष्ठभूमि अत्यंत रोचक, विस्मयकारी और धार्मिक सहिष्णुता की जीवन्त मिशाल है। इसका श्रेय 'वैशाली संघ' के संस्थापक श्री जगदीश चन्द्र माथुर, आई. सी. एस., तत्कालीन अनुविभागीय अधिकारी, हाजीपुर को है। वे 17.07.1944 से 17.12.1945 तक हाजीपुर में रहे। साहित्य के विद्यार्थी होते हुए भी इन्होंने वैशाली के इतिहास की ओर झांका। उन्होंने वैशाली के अतीत का परिदृश्य देखा। राजा विशाल से लेकर वज्जिसंघ की गणतंत्रात्मक शासन पद्धति और भगवान महावीर-बुद्ध की स्मृतियों ने उन्हें वैशाला सघ आर वैशाली-महोत्सव मनाने के लिए उत्प्रेरित किया। उन्होंने अशासकीय सदस्यों की एक समिति बनाकर दिनांक 31.12.1944 को हाजीपुर के सरस्वती सदन में वैशाली महोत्सव मनाने का संकल्प किया। वासोकुण्ड में प्रथम वैशाली महोत्सव दिनांक 31.03.1945 को आयोजित किया गया, जिसमें ख्यातिप्राप्त इतिहासकार सर्वश्री डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी और डॉ. ओ. सी. गंगुली सम्मिलित हुए। डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी ने अपने अभिभाषण में वैशाली के गरिमामंडित अतीत पर प्रकाश डाला और आविर्भूत होकर कहा 'अपने जीवन में कभी इतने विशाल जनसमूह के सामने मैंने भाषण नहीं दिया था। उपस्थित जनसमूह को भी प्रथम बार ऐसे उच्च इतिहासकार का भाषण सुनने का अवसर मिला।
द्वितीय वैशाली महोत्सव दिनांक 10.04.1946 (रामनवमी) और तृतीय दिनांक 14.04.1947 (चैत्रसंक्रान्ति) को मनाया गया। इसके बाद प्रत्येक वर्ष महावीर जयंति के पावन पर्व पर वैशाली महोत्सव धूम-धाम से वासोकुण्ड में मनाया जाने लगा। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि वैशाली संघ में कोई भी सदस्य जैन नहीं था और वासोकुण्ड सदियों से जैन-जन विहीन रहा। अष्टम वैशाली महोत्सव डॉ. के. एम. मुंशी, खाद्यमंत्री, भारत सरकार के मुख्य आतिथ्य में दिनांक 07.04.1952 (महावीर जयंति) को सम्पन्न हुआ। इस समारोह में वैशाली संघ ने प्रस्ताव (क्र-2) पारित किया, जो इस प्रकार है
"संघ, जैनों और बिहार सरकार से अनरोध करता है कि वे जैनों के चौबीसवें तीर्थकर भगवान महावीर की जन्मभूमि वैशाली में वैशाली प्राकृत जैन इन्स्टीच्यूट की
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