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प्राकृत शोध संस्थान के उदय एवं विकास की गौरव गाथा
डॉ. राजेन्द्र कुमार बंसल *
यह हर्ष का विषय है कि 'प्राकृत जैन शास्त्र और अहिंसा शोध संस्थान, वैशाली' द्वारा स्वर्ण जयन्ती गौरव ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है। वैशाली शब्द का अपना अतिशयकारी आकर्षण है। वैशाली गणराज्य था, जो प्राचीन लिच्छवि गणतंत्र का स्मारक है । यह वज्जिसंघ के नाम से विख्यात था। इसके सातधर्म अर्थात् संवैधानिक कार्य प्रणाली, एकजुटता, कानून की प्रतिबद्धता, वृद्धों का सत्कार, कुलनारियों एवं कुलकुमारियों के सम्मान की रक्षा, धर्म स्थलों का संरक्षण और धार्मिक सहिष्णुता आज भी श्रेष्ठ प्रजातंत्रीय प्रणाली की सफलता के आधार हैं।
विदेह देश स्थित वैशाली गणराज्य के अंतर्गत वासोकुण्ड में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर राजकुमार महावीर-वर्द्धमान का जन्म ईसा पूर्व 599 में हुआ था। यहाँ महावीर के गर्भ, जन्म और तप कल्याणक सम्पन्न हुए थे। वैशाली महात्मा बुद्ध को अतिप्रिय थी। यह उनकी कर्म और साधना स्थली थी। बुद्ध महावीर के समकालीन थे। उन्होंने ज्ञान की खोज में वैशाली के दो महायोगी अलारकमाल और उद्धत रामपुत्र के आश्रम में रहकर योग विद्या सीखी थी। ये भ. पार्श्वनाथ के अनुयायी थे। वैशाली ( वसाद) में महात्मा बुद्ध के अनेक स्मृति चिन्ह विद्यमान हैं। इस प्रकार वैशाली (बासोकुण्ड) विश्व की दो महान विभूतियों से उपकृत हुई। लोक जीवन में महावीर के दर्शन और आचार के चिन्ह अभी भी पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होते आ रहे हैं। यह महावीर के व्यक्तित्व का विशिष्ट प्रभाव है जो वैशाली वासियों में अनुभूत किया जा सकता है।
बिहार राज्य में विदेह, अंग और मगध देश सम्मलित थे। जैनधर्म के चौबीसों तीर्थंकर परम्परागत रूप से हजारीबाग जिले के सम्मेद शिखरजी से मोक्ष जाते हैं। विद्यमान हुंडावसर्पिणी काल के दोष के कारण इस युग में बीस तीर्थंकर सम्मेद शिखर जी से निर्वाण को प्राप्त हुए। बिहार स्थित पावापुर एवं चम्पापुर से एक-एक तीर्थंकर मोक्ष गये। इस प्रकार बाइस तीर्थंकरों के निर्वाण से बिहार पावन हुआ। ऋषभदेव कैलाश पर्वत और नेमिनाथ भगवान गिरनार जी से मुक्त हुए। चौबीस तीर्थंकरों में पाँच तीर्थंकरों यथा- वासुपूज्य, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत नाथ, नमिनाथ और महावीर का जन्म बिहार में हुआ । इस दृष्टि से बिहार राज्य और वहाँ का जनमानस समन्वय और विशाल दृष्टिकोण का धनी रहा है। इसी * बी - 369, ओ. पी. एम. अमलाई, जिला
शहडोल, म.प्र. -
484117.
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