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जैन संस्कृति
12. " हे मोर चित, पुण्यतीर्थे जागो रे धीरे, एई भारतेर महामानवेर, सागर-तीरे,
केह न जाने, कार आह्वाने, कत मानुषेर धारा दुर्बार स्रोते एलो कोथा हते, समुद्र हलो हारा।
थाय आर्य, हेथा अनार्य, हेथाय द्रविड़ - चीन, शक - हूण दल, पाठान, मोगल एक देहे होलो लीन, रणधारा बाहि, जयगानगाहि, उन्माद कलरवे
भेदि मरू प्रथ, गिरि पर्वत यारा एसे छिलो सबै । तारा मोर माझे सवाई विराजे के हो नहे-नहे दूर, आभार शोणिते येथे ध्वनित तारि विचित्र सूर।" वही ।
13.
14. वही, पृ. 4-5
15.
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया||56|| शोचयन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम् । न शोचयन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा |1571 तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः । भूतिकामैर्नरैनित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च ॥5911 - 16. जह मम न पियं दुक्खं एमेव सव्वजीवाणं ।
न हणइ न हणावेइ य समणई तेन समणो ।। दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा - 154 17. नत्थि य सि कोई वेसो पिओ व सव्वेसु चेव जीवेसु ।
एएण होई समणो एसो अन्नोऽवि पज्जाओ ।। - वही, गाथा - 155
18. सो समणो जई सुमणो भावेण य जइ न होइ पावमणो ।
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भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, पृ. 3
मनुस्मृति, अध्याय-3
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समणे य जणे य समो य माणावमाणेसु । । - वही, गाथा - 156
19. न वि मुण्डिएण समणो द. नि. गाथा - 157
20. उरगगिरिजलण सागर नहयलतरुणगण समो जो होइ ।
एएण भमर गिरधरणिजलरुहरविपवण समो जओ समणो ।। द.नि. - गाथा - 157. 21. श्रमण, अंक 8, पृ. 15, वर्ष 1950
22. वही, पृ. 16
23. वही, अंक 1, पृ. 20, वर्ष 1949
24. विश्व की प्राचीन सभ्यता का इतिहास, डॉ. सुशील माधव पाठक, पृ. 552
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25. "The doctrine of Karman constituted the essential doctrine of the Sramanas and its impact created an unprecedented ferment in the thought world of the sixth century B.C. in India ......... I had also argued that the essence of this heterodoxy insisted in the doctrine of Karman and rebirth as also in the practice of asceticism and Yoga. In this since this heterodox stream could perhaps be traced back to the Indus civilization. While this is undoubtedly
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