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________________ 330 मिलते हैं। यदि समण-ब्राह्मण को सही ढंग से समझने का प्रयास किया जाए तो दोनों ही परम्पराओं में अभेद ज्ञान होगा। 'समण-ब्राह्मण' के विषय में डॉ. पाठक ने लिखा है कि इसमें जो ब्राह्मण शब्द है वह वर्ण व्यवस्था में मान्य ब्राह्मण शब्द नहीं है बल्कि उससे भिन्न है। किन्तु मैं जैसा समझता हूँ यदि समण-ब्राह्मण के ब्राह्मण शब्द को वर्ण व्यवस्था का ब्राह्मण भी मान लिया जाए तो भी दोनों के बीच सामंजस्यता देखी जा सकती है। समण-ब्राह्मण या श्रमण-ब्राह्मण कौन थे इस तथ्य को जानने के लए इसका अर्थ जानना आवश्यक है। समण-ब्राह्मण के निम्नलिखित दो अर्थ हो सकते हैं(1) समण या श्रमण जिसने आत्मबोध कर लिया है वह ब्राह्मण हो गया। क्योंकि जिसे आत्मबोध हो गया उसे परमात्म बोध भी हो गया। क्योंकि वैदिक परम्परा में आत्मा और परमात्मा में भेद नहीं माना जाता है। आत्मा, परमात्मा और ब्रह्म सब एक ही तत्व के विविध नाम या विविध रूप हैं। जो ब्रह्म को जानता है वही ब्राह्मण होता है- 'ब्रह्मं जानाति इति ब्राह्मण:', इस प्रकार आत्म ज्ञानी समण ब्रह्मज्ञानी हो जाता है और वह ब्राह्मण हो जाता है। उसे समण-ब्राह्मण कहा जा सकता है। (2) यदि कोई व्यक्ति ब्राह्मण हैं, ब्राह्मण परम्परा में है। किन्तु यज्ञादि अनुष्ठानों में होने वाली बलि प्रथा का वह विरोध करता है और अहिंसादि व्रतों को अपनाकर साधना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है तो ब्राह्मण होते हुए भी वह समण है। अतः 'समण-ब्राह्मण' शब्द श्रमण परम्परा तथा वैदिक परम्परा के अभेद का परिचायक है। पाद टिप्पणीः 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ संस्कृति के चार अध्याय, प्रस्तावना, पृ. 5. श्रमण, अंक 8, पृ. 33, वर्ष 1950. एक बूंद एक सागर, भाग 4, सं. कुसुम प्रज्ञा, पृ. 1422. श्रमण, अंक 3, पृ. 11, वर्ष 1950 विश्व संस्कृति का विकास, कालीदास कपूर, परिचय, पृ. क. Kant, Critique of Pure reason, Eng. Tran. Max Mullar, p. 730. Culture is the complex whole that consists of everything we think and do have a member of society Robert Bierstedt, The Social Order, p. 829 Culture is the expression of our nature in our modes I living and I thinking, in our everyday intercourse in art, in literature, in reliagion, in recreation and in enjoyment, Society, Macdver and Page. 9. समाजशास्त्र, जी. के. अग्रवाल, पृ.299 10. संस्कृति के चार अध्याय, राजपाल एण्ड सन्स, कश्मीरी गेट, दिल्ली, पृ. 11 11. प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, डॉ. जयशंकर मिश्र, पृ.15-16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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