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________________ जैन संस्कृति 327 इतना ही नहीं बल्कि यह भी कहा गया- "यदि पागल हाथी भी खदेड़ रहा हो तो भी किसी जैन मंदिर में नहीं जाना चाहिए"। अर्थात् जैन मन्दिर में जाना किसी पागल हाथी से भी ज्यादा खतरनाक है। परिणाम स्वरूप त्रस्त होकर श्रमण परम्परा वालों को अपने मूल स्थान को छोड़कर यहाँ-वहाँ भागना पड़ा। बिहार तथा पूरबी उत्तर प्रदेश श्रमण परम्परा का मूल स्थान है लेकिन आज कोई भी जैन या बौद्ध ऐसा नहीं मिलेगा जो कहे कि वह बिहार या उत्तर प्रदेश का मूलवासी है। बौद्ध धर्म में जाने-आने या सवारी पर चढ़ने की कोई पाबन्दी नहीं है अत: वे लोग भारतवर्ष को छोड़कर जापान, चीन, थाईलैंड आदि देशों में चले गए। जैन धर्म में साधु पदगामी होते हैं, वे किसी सवारी पर नहीं चढ़ सकते। जैनों के लिए देश से बाहर जाना असम्भव था। अतः वे लोग अपनी सुरक्षा की दृष्टि से पश्चिम के रेगिस्तानों में तथा दक्षिण के जंगलों में चले गए। उसके बाद भी जैनों को छोड़ा नहीं गया। श्रमण संस्कृति या जैन-बौद्ध संस्कृति क्षत्रिय संस्कृति है क्योंकि इसमें क्षत्रियों की प्रधानता है। परन्तु उन्हें निम्नस्तरीय बनाने के लिए वैश्य घोषित किया गया। इसके लिए ब्राह्मण वादियों ने तर्क यह दिया कि क्षत्रियों का धर्म युद्ध करना है। यदि उन लोगों ने युद्ध को हिंसात्मक समझकर, अहिंसा मार्ग को अपनाने के लिए व्यापार आदि करना शुरू कर दिया तो वे वैश्य हो गए। क्योंकि वर्ण व्यवस्था के अनसार कषि और व्यापार. वैश्यों के धर्म या कर्म है। चूंकि जैनों की संख्या कम थी, अतः परिस्थितिवश उन लोगों ने अपने को वैश्य मान लिया। यद्यपि श्रमण परम्परा में न तो वर्ण व्यवस्था है और न कोई जाति व्यवस्था ही। श्रमण संस्कृति एक क्षत्रिय संस्कृति 'श्रमण परम्परा मुख्यतः क्षत्रियों की और वैदिक परम्परा ब्राह्मणों की है 601 वैदिक संस्कृति में ब्राह्मण ग्रन्थ एवं ब्राह्मण वर्ण की प्रधानता होने के कारण उसे ब्राह्मण परम्परा कहते हैं। उसी तरह श्रमण परम्परा में क्षत्रियों की प्रधानता होने से उसे क्षत्रिय परम्परा कहा जा सकता है। श्रमण परम्परा के क्षत्रिय प्रधान होने के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं1. चौबीस तीर्थकर क्षत्रिय जैन संस्कृति या जैन धर्म में 24 तीर्थकर हो गए हैं वे सबके सब क्षत्रिय राजकुमार थे। सबने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था। इतना ही नहीं बल्कि यह भी माना जाता है आगे जो 24 तीर्थकर होंगे वे भी क्षत्रिय होंगे। गौतम बुद्ध जिन्हें बौद्ध धर्म का प्रतिष्ठापक माना जाता है, भी क्षत्रिय कुलोत्पन्न थे। 2. महावीर के जन्म से सम्बंधित गर्भ परिवर्तन जैन परम्परा यह मानती है कि रानी त्रिशला जिनके गर्भ से वर्धमान का जन्म हुआ, वास्तव में उन्हें अपने गर्भ में धारण नहीं किया था। उन्हें तो ब्राह्मणी महिला देवनन्दा ने अपने गर्भ में धारण किया था। किन्तु शासक या नियंत्रक इन्द्र को यह गलत जान पड़ा। तब उन्होंने हरिणेगमेसी को गर्भ परिवर्तन के लिए आदेश दिया तथा स्वप्न में देवनन्दा को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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