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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
करते थे तथा सचेतक जो श्वेत वस्त्र धारण करते थे। वे बाद में क्रमशः दिगम्बर तथा श्वेताम्बर नाम से जाने गए और धीरे-धीरे वे जैन संस्कृति की दो शाखाओं के रूप में विकसित हुए। भिन्न शाखाओं के रूप में स्थापित होने के कारण दोनों में कई सैद्धान्तिक भेद भी देखे जाते हैं। श्रमण संस्कृतिक अवनत काल
यदि ई. पूर्व छठी शताब्दी को श्रमण संस्कृति का स्वर्णयुग कहते हैं तो सन् 8वीं सदी को जैन संस्कृति का अन्धकार युग माना जा सकता है। इसी समय शंकराचार्य का प्रादुर्भाव हुआ जिन्होंने वैदिक संस्कृति की जड़ को अत्यन्त सुदृढ़ बना दिया। उन्होंने भारतवर्ष में चहुँदिश वैदिक पीठ स्थापित किये और उपनिषदों की व्याख्या की। उन्होंने औपनिषदिक ब्रह्मवाद को फिर से अपने ढंग से प्रस्तुत किया जिसका प्रभाव समाज पर पड़ा। भारतीय समाज पर सैद्धान्तिक रूप में वैदिक प्रभाव पड़ना जैन संस्कृति के लिए उतना घातक नहीं हुआ जितना कि विविध कुभावनाओं के जागृत हो जाने से श्रमण संस्कृति के प्रति अवहेलना का भाव उत्पन्न होना घातक बन गया। श्रमण संस्कृति के पारिभाषिक शब्दों के निकृष्ट अर्थ निरूपित किए गए तथा समाज में उनके गलत व्यवहार भी होने लगे, जैसेलुन्चा-लुच्चा
जैन साधु अपने सिर के बालों को स्वयं उखाड़ते हैं जिसे लोंच कहते हैं। लोंचना तथा नोंचना समानार्थी हैं जो साधु अपने बालों को लोंचन करता है या उन्हें उखाड़ता है उसे लुंचा कहा जाता है। लुंचा लोगों से वैदिक परम्परा का सैद्धान्तिक विरोध था। इसलिए उनके प्रति यह धारणा बनी कि वे धर्म विरोधी या अधर्मी या नास्तिक होते हैं। जो अधर्मी है वह समाज के अनुकूल नहीं है और जो समाज के अनुकूल नहीं है वह शैतान है, झूठ बोलने वाला है, अनाचारी है। अत: लुंचा शब्द अनाचारियों के लिए व्यवहृत होने लगा और वही धीरे-धीरे 'लुच्चा' बन गया जो सामान्य बोल-चाल की भाषा में प्रचलित है। श्रावगी-कुत्ता
जैन संस्कृति में गृहस्थ के लिए श्रावक' शब्द निर्धारित है। श्रावक का ही बदला हुआ रूप श्रावगी (श्रावक-श्रावग-श्रावगी) है। किन्तु दक्षिण बिहार में श्रावगी शब्द कुत्ता के लए व्यवहार में आने लगा। बुद्ध-बुद्धू
भगवान बुद्ध को बुद्ध तब कहा गया जब उन्हें बोध गया में महाज्ञान की प्राप्ति हुई। वे महाज्ञानी थे। किन्तु उनका विचार वैदिक परम्परा या ब्राह्मण परम्परा का विरोध था। अतः उन्हें धर्म विरोधी और नास्तिक माना गया। जो धर्म विरोधी है, जिसे धर्म का ज्ञान नहीं वह अज्ञानी है। अत: बुद्ध तथा उनके अनुयायियों को अज्ञानी घोषित किया गया। इस प्रकार अज्ञानी के लिए बुद्ध शब्द व्यवहार होने लगा और धीरे-धीरे समय के प्रवाह में 'बुद्धू' कह दिया जाता है।
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