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जैन संस्कृति
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जैन संस्कृति के विकास के लिए यथा सम्भव प्रयास किए। सम्प्रति को जैन परम्परा के प्रति अति उत्साह था। उन्होंने सम्पूर्ण देश में जैन मन्दिर बनवाए तथा जैन साधुओं को अपने मत के प्रचार-प्रसार के लिए विभिन्न स्थानों पर भेजा। उन्होंने अपनी राजधानी उज्जैन में एक जैन मेला लगवाया था जिसमें प्रदर्शित भक्तिभाव को देखकर राजा सुहस्ति जो स्थूलभद्र के शिष्य थे तथा जिन्होंने सम्प्रति पर विजय भी प्राप्त की थी, अत्यन्त प्रभावित हुए। उसके परिणाम स्वरूप सुहस्तिन ने भी जैन संस्कृति के विकास के लिए विभिन्न कार्य किए। उसी समय राजा खारवेल के होने की जानकारी होती है। उदयगिरि की गुफा से प्राप्त ई. पूर्व 2सरी शती के एक लेखन से यह ज्ञात होता है कि किस प्रकार उन्होंने पत्थरों से निवास स्थानों की संरचना करवाई और जैन भक्तों को भारी मात्रा में उपहार दिए। खण्डगिरि, उदयगिरि तथा नीलगिरि जो उड़िसा में हैं, जैनगुफाओं के लिए प्रसिद्ध है। आज का हाथीगुम्फा भी जैन गुफा है। इन गुफाओं के विकास में खारवेल का बहुत बड़ा हाथ माना जाता है। कालकाचार्य तथा गर्धभिल्ल
ई. पूर्व प्रथम शती में उज्जैन के राजा गर्धभिल्ल हुए जिनका जैन मुनि कालकाचार्य से मतभेद था। कालकाचार्य की बहन सरस्वती का उन्होंने अपहरण कर लिया था और कालकाचार्य के आग्रह करने पर भी उसे नहीं छोड़ा। तब कालकाचार्य ने सिन्धु की ओर प्रस्थान किया और शकों को उज्जैन पर चढ़ाई करने के लिए उकसाया। फलस्वरूप शकों ने उज्जैन पर चढ़ाई की और गर्धभिल्ल को हराकर उसे अपने अधीन कर लिया। किन्तु गर्धभिल्ल के उत्तराधिकारी विक्रमादित्य ने शकों को अपने राज्य से बाहर कर दिया। बाद में एक जैन सन्त से ही प्रभावित होकर उसने जैन संस्कृति के विकास के लिए काम किया। कंकाली टीला
___मथुरा के कंकाली टीला पर जैन स्तूप के भी अवशेष में दूसरी शती का एक लेख मिला है जिससे जैन संस्कृति के विषय में बहुत सी बातें जानी जाती हैं, जैसे- 24 तीर्थकर जैनधर्म में नारी-प्रभाव, दिगम्बर-श्वेताम्बर आदि। हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल
सन् 1094-1143 तक गुजरात के राजा सिद्धराज जय सिंह हुए जिन्होंने स्वयं शिव भक्त होते हुए भी आचार्य हेमचन्द्र को अपने दरबार के एक सम्मानित सदस्य के रूप में प्रतिष्ठित किया। आचार्य हेमचन्द्र ने राजा सिद्धराज जय सिंह के उत्तराधिकारी कुमारपाल जिनका समय सन् 1143-1173 था, को अपने प्रभाव से जैनधर्मावलम्बी बना दिया। कुमारपाल ने गुजरात को एक जैन राज्य बनाने का प्रयास किया, साथ ही हेमचन्द्र ने सुविधा पाकर जैन ज्ञान-विज्ञान को और सुदृढ़ बनाया जिससे उन्हें 'कलिकाल सर्वज्ञ' की उपाधि से सम्मानित किया गया। दिगम्बर-श्वेताम्बर
महावीर के संघ में दोनों ही तरह के साधु रहते थे। अचेलक जो वस्त्र धारण नहीं
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