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जैन संस्कृति
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अर्हन्
'अर्हन्' श्रमण परम्परा का बहुत ही प्रसिद्ध एवं प्रचलित शब्द है। इसका मूलरूप है- अरिहन्त। अरिहन्त-अरिहन्त, अर्थात् जिसका कोई शत्रु नहीं है। अर्हन् तथा अर्हन् समानार्थी है। अर्हत् उन्हें कहते हैं जो राग द्वेष से ऊपर उठे हुए वीतरागी होते हैं। ऐसे लोग ही तीर्थकर होते हैं। जो लोग अर्हन् या अर्हत के अनुयायी होते हैं उन्हें आर्हत कहते हैं। आर्हत लोग जैन तथा प्रधानतः क्षत्रिय होते हैं। आर्हतों की चर्चा वैदिक पुराणों में हुई है। विष्णु पुराण में आर्हतों के विषय में विशेष बातें मिलती हैं। उसके अनुसार आर्हत धर्म के मानने वाले असुर थे। किसी मायामोह नामक व्यक्ति ने असुरों को आहत धर्म में दीक्षित किया था। असुरों का विश्वास वेदों में नहीं था। वे यज्ञ तथा पशुबलि के भी विरोधी थे। श्राद्ध तथा कर्मकाण्ड को वे लोग नहीं मानते थे। वे लोग अहिंसा धर्म में आस्था रखने वाले थे। जैन दर्शन के प्रसिद्ध सिद्धान्त अनेकान्तवाद का निरूपण मायामोह के द्वारा ही हुआ था। ऋषभदेव
ऋषभदेव जैन परम्परा में आदि तीर्थकर माने गए हैं। वे अयोध्या के राजकुमार थे। उनके पिता का नाम नाभिराय तथा माता का नाम मरुदेवी था। भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने वातरशना मुनियों के धर्म को स्थापित करने के लिए मरुदेवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में अवतार लिया था। जब उनका जन्म हआ तो पंडितों ने भविष्यवाणी की कि यह राजकुमार अपनी परम्परा एवं धर्म से भिन्न किसी परम्परा एवं धर्म की स्थापना करेगा। उनके विषय में डॉ. पाठक ने लिखा है- "ऋषभदेव के चरित्र की त्रिपथगा शैव, वैष्णव और जैन पुराणों में मिलती है और उसमें यथेष्ट भिन्नता है। शैव पुराणों में ऋषभदेव के चरित्र पर पाशुपत योग का स्पष्ट प्रभाव है। वैष्णव पुराणों में विष्णु के विभवावतार रूप में ऋषभदेव पर भागवतीय प्रभाव परिलक्षित होता है, जबकि उन दोनों से यथेष्ट रूप में भिन्न जैन आदि पुराण में ऋषभदेव का चरित व्याख्यान है। भागवत के इस विवरण में विसंगतियां भी हैं- शतपुत्र उत्पन्न करने वाले गृह में विधर्म का अनुवर्तन करने वाले नरेश ऋषभदेव को वातरशन उर्ध्वमंत्री और श्रमण कहना सुसंगत तो नहीं। यह स्पष्टतः वैखानस आदि भागवतीय सम्प्रदाय के ढांचे में जैन आख्यान को प्रस्तुत करने का प्रयास दिखाई देता
चौबीस तीर्थकर- जैन संस्कृति में चौबीस तीर्थकर यानी धर्म प्रवर्तक हो गए हैंऋषभनाथ, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ,
, पुष्पदत्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतोनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी जिनके प्रतीक चिन्ह क्रमश: इस प्रकार हैं - बैल, गज, अश्व, बन्दर, चकवा, कमल, नन्द्यावर्त, अर्द्धचन्द्र, स्वास्तिक, गैंडा, भैंसा, शूकर, सेही, वज्र, हरिण, छाग, तगर, कुसुमा (मत्स्य), कलश, उत्पल (नीलकमल), शंख, सर्प, सिंह आदि।
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