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________________ 314 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ कहा जा सकता है कि शिव का जीवन योगवादी है जबकि वैदिक देवों का जीवन भोगवादी है। (2) समता- शिव समतावादी हैं। उनके यहाँ पशु तथा अन्य जीव-जन्तुओं को स्नेह प्राप्त होता है। जिन भयावह जीवों से लोग डरकर अलग रहना पसन्द करते हैं वे सभी उनके आस-पास होते हैं। सर्प तो शिव के शरीर से लिपटा रहता है। मानव ही नहीं पशु-पक्षियों के आश्रयदाता होने के कारण उन्हें पशुपति नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। (3) समन्वयवादिता- शिव के परिवार में एक विचित्र समन्वयवादिता देखी जाती है। उनके साथ वृषभ, सिंह, मोर, सर्प, चूहा सभी मिल-जुलकर रहते हैं। कोई किसी का घात नहीं करता है, यद्यपि सामान्यतः ये सभी एक-दूसरे के विरोधी माने गये हैं। ये सभी बातें-साधना, समता, समन्वयवादिता जैन संस्कृति में देखी जाती है जो शिव और जैन संस्कृति को बहुत नजदीक ला देती है। यदि उन्हें अनार्य का देवता मान लिया जाता है तब तो जैन संस्कृति और शिव का सम्बन्ध और अधिक सुदृढ़ हो जाता है। इस तरह शिव के रूप में या एक सामान्य योगी के रूप में पाया जाने वाला चित्र जैन संस्कृति को सिन्धुघाटी सभ्यता से मिला होता है और इस योगवादी आधार को मानने वाले यह स्वीकार करते हैं कि जैन संस्कृति की प्राचीनतम सिन्धुघाटी सभ्यता की प्राचीनता से मिलती-जलती है। (3) प्रतिक्रियावादी सिद्धान्त __ यह सिद्धान्त मानता है कि ब्राह्मणवाद या वैदिक विधि विधानों से समाज जब त्रस्त हो गया तब उससे त्राण जाने के लिए प्रतिक्रिया स्वरूप एक नई चिन्तनधारा का जन्म हुआ जो श्रमण परम्परा के नाम से जाना गया। यह वस्तुवादी उत्तेजक विचार (श्रमण-सिद्धान्त) बहुत से विद्वानों के द्वारा उल्लिखित है किन्तु इसकी उत्पत्ति तथा महत्व को विभिन्न रूपों में विश्लेषित किया गया है। सामान्य धारणा यही है कि यह उत्तेजक विचार वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड की प्रतिक्रिया स्वरूप प्रस्तुत हुआ7। जैन संस्कृति में यज्ञ एवं यज्ञवादी हिंसा का विरोध देखा जाता है। वर्ण व्यवस्था भी इस परम्परा में मान्य नहीं है। ब्राह्मणवाद में ब्राह्मणों को समाज से सभी सुविधाओं को प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है जिसे वे आज भी भुना रहे हैं लेकिन सामाजिक-सुविधा के बदले समाज कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना भी उनका कर्तव्य है जिसे उस लोगों ने छोड़ रखा है। अतः समाज में प्रतिक्रिया का होना तो स्वाभाविक है। किन्तु प्रतिक्रिया कब हुई? प्रतिक्रिया क्या भगवान महावीर के समय में हुई, क्या ऋषभदेव के समय में हुई या उनसे भी पहले हुई इसकी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं होती है। महावीर के समय में जैन संस्कृति का सबसे ज्यादा विकास हुआ, इसलिए कहा जा सकता है कि ब्राह्मणवाद के विरोध में सबसे ज्यादा प्रतिक्रिया ई. पूर्व छठी शताब्दि में हुई। किन्तु प्रतिक्रिया का प्रारम्भ तो उसे नहीं मान सकते क्योंकि भगवान महावीर तो 24वें तीर्थकर हो गए हैं। यदि ऋषभदेव को जैन संस्कृति का जन्मदाता मानते हैं तो कह सकते हैं कि उनके समय में ही ब्राह्मणवाद के विरोध में सामाजिक प्रतिक्रिया हुई। लेकिन यदि श्रमण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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