SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 312 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ नगरों में रहते थे। भारतीय धर्म और संस्कृति की अनेक परम्पराएं, रीतिरिवाज, प्राचीन पुराण और इतिहास अनार्यों ने आर्य भाषा में अनुदित किए हैं क्योंकि आर्य भाषा ऐसी थी जो सर्वत्र छा गई थी तथापि उसकी शद्धि कायम नहीं रह सकी, क्योंकि उसमें अनेक अनार्य शब्द मिल गये 221 आज भी श्रमण संस्कृति भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसके निर्माण में आर्य संस्कृति के साथ ही उस आर्येत्तर या अनार्य संस्कृति का भी बराबरी का हाथ है जो भारतवर्ष में आर्यों के आने के पहले से चल रही थी। अतः डॉ. चौधरी यह बताना चाहते हैं कि श्रमण संस्कृति उस अनार्य संस्कृति का ही रूप है जो आर्य संस्कृति का पूर्वगामी है। इनके मत के समर्थन में दो बातें साफ दिखाई पड़ती हैं। (क) अनार्य संस्कृति का भारतीय संस्कृति के निर्माण में हाथ होना। (ख) आज की भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग के रूप में श्रमण संस्कृति का पाया जाना। किन्तु यहाँ समस्याएं उठ खड़ी होती हैं(1) क्या अनार्य शब्द समय के प्रवाह में 'श्रमण' शब्द बन गया है? लेकिन अनार्य का बदला हुआ रूप 'श्रमण' हो जाए ऐसा आश्चर्यजनक लगता है। यदि 'अनार्य' का ही बदला हुआ रूप 'श्रमण' होता तो दोनों की शाब्दिक संरचनाओं में कुछ न कुछ समानता होती, जो इन दोनों के बीच नहीं है। (2) क्या आर्यों से पहले भारत में पाई जाने वाली संस्कृति का नाम प्रारम्भ से ही 'श्रमण' था, परन्तु आर्यों ने अपने से उसकी भिन्नता दर्शाने के लिए 'अनार्य' नामकरण कर दिया। क्योंकि अनार्य और कुछ अर्थ हो या न हो लेकिन 'आर्य से भिन्न' अर्थ तो हो ही सकता है। भिक्षु जगदीश काश्यप ने तो स्पष्ट घोषित किया है- "सच बात तो यह है कि भारतवर्ष की मौलिक तथा आदिम संस्कृति श्रमण संस्कृति ही रही। आगे चलकर जब आर्यों का प्रवेश भारतवर्ष में हुआ तब यहाँ वैदिक संस्कृति की परम्परा की स्थापना हुई। श्रमण संस्कृति तथा वैदिक संस्कृति दोनों के परस्पर मिश्रण तथा आदान-प्रदान से हमारे देश की जो संस्कृति बनी, उसे हम हिन्दू संस्कृति कहते हैं। डॉ. चौधरी के विचार में अस्पष्ट ढंग से तथा डॉ. चटर्जी और भिक्षु काश्यप के कथन में स्पष्ट ढंग से यह बताया गया है कि श्रमण संस्कृति, वैदिक संस्कृति या आर्य संस्कृति के पहले से है। किन्तु कितना पहले से है तथा कब इसकी उत्पत्ति हुई यह नहीं कहा गया है। इससे श्रमण संस्कृति तथा वैदिक संस्कृति का पूर्वापर सम्बन्ध ज्ञात होता है। (2) यज्ञ-योगवादी सिद्धान्त इस सिद्धान्त के अनुसार वैदिक परम्परा यज्ञ प्रधान है तथा श्रमण परम्परा योग प्रधान। यौगिक प्रथा का संकेत सिन्धु घाटी सभ्यता में मिलता है। इसलिए श्रमण संस्कृति या जैन संस्कृति का सम्बन्ध सिन्धु घाटी सभ्यता से है और इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि श्रमण संस्कृति की प्राचीनता उतनी है जितनी सिन्धु घाटी सभ्यता की प्राचीनता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy