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________________ जैन संस्कृति 311 बताना मुश्किल हो जाता है कि जैन संस्कृति की उत्पत्ति कब हुई। किन्तु उन विभिन्न मतों को तो यहां देखा ही जा सकता है, जिन्होंने इसकी उत्पत्ति पर प्रकाश डाला है। वे सिद्धान्त इस प्रकार हैं(1) आर्य-अनार्यवादी सिद्धान्त (The Arya-Arnaya Based Theory) (2) यज्ञ-योगवादी सिद्धान्त (TheYajna-Yoga Based Theory) (3) प्रतिक्रियावादी सिद्धान्त (The Reaction Theory) (4) सुधारवादी सिद्धान्त (The Refermative Theory) (5) सह अस्तित्ववादी सिद्धान्त 1. आर्य-अनार्यवादी सिद्धान्त यह सिद्धान्त मानता है कि मध्य एशिया से आर्य लोग भारतवर्ष में आए और उन लोगों ने वैदिक संस्कृति की स्थापना की। उनके आने से पूर्व भी भारत में एक संस्कृति थी जिसे आर्य लोगों ने अपना विरोधी मानकर अनार्य कहा यानी जो आर्य नहीं थे। देष आर्य लोगों ने उनलोगों को असभ्य और अविकसित घोषित किया किन्तु वास्तव में यथाकथित अनार्य लोगों की एक अपनी उन्नत परम्परा थी और वे नगरों में रहते थे। चूंकि आर्य और अनार्य लोगों के बीच सैद्धान्तिक विरोध था और आज भी वैदिक परम्परा तथा श्रमण परम्परा में सैद्धान्तिक विरोध देखा जाता है इसलिए ऐसा अनुमान किया जाता है कि श्रमण परम्परा का सम्बन्ध उस आर्येतर परम्परा से है जो आर्यों के यहाँ आने के पहले से विराजमान थी और आर्यों ने जिन्हें अनार्य कहा। इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के मत द्रष्टव्य हैं। डॉ. गुलाबचन्द्र चौधरी ने अपने लेख "आर्यों से पहले की संस्कृति" में लिखा है "आर्यों के बाहर से आने की घटना कोई कल्पित नहीं है तथा उसका उल्लेख भी वेदों तक ही सीमित नहीं है। वह ऐसी घटना है जिसकी ध्वनि बाद के साहित्य में भी मिलती है। संस्कृत पुराणों में असुरों की उन्नत भौतिक सभ्यता तथा बड़े-बड़े प्रासाद और नगर बनाने की कला का उल्लेख है। ब्राह्मण, उपनिषद् और महाभारत आदि परवर्ती साहित्य में इन असरों की अनेक जातियों का उल्लेख है. जैसे कालेय. नाग आदि। ये सारे भारत में फैले हुए थे। इनके अनेक स्थानों पर बड़े-बड़े किले थे। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का मण्डप इसी असुर जाति के मय नामक व्यक्ति ने बनाया था। महाभारत और पुराणों में ब्राह्मण, क्षत्रियों के साथ अनार्य नाग और दासों की शादी के अनेक उल्लेख मिलते हैं। ये शान्तिप्रिय, उन्नतिशील तथा व्यापारी थे। अपने उपायों से ये भौतिक सभ्यता में बढ़े-चढ़े थे। डॉ. चौधरी ने अपने मत के समर्थन में डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी के विचार को भी प्रस्तुत किया है जो इस प्रकार है "आज की नूतन सामग्री और नवीन उद्धार कार्य बतलाते हैं कि भारतीय सभ्यता के निर्माण में न केवल आर्यों का श्रेय है बल्कि उनसे पहले रहने वाले अनार्यों का भी है। अनार्यों का इस सभ्यता के निर्माण में बहुत बड़ा हिस्सा है। अनार्यों के पास आर्यों से बहुत बढ़ी-चढ़ी भौतिक सभ्यता थी। जब आर्य बेघर-बार लुटेरे थे तब अनार्य बड़े-बड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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