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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
जैन संस्कृति के लक्षण
__श्रमण संस्कृति की दो प्रमुख धाराएं हैं- जैन तथा बौद्ध, इसकी चर्चा पहले हो चुकी है। चूंकि प्रतिपाद्य विषय जैन संस्कृति है अत: यहां उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालना आवश्यक है। जैन संस्कृति के निम्नलिखित विविध लक्षणों को जानने के लिए यह भी आवश्यक है कि उनपर विभिन्न सम्बंधित दृष्टियों से विचार किया जाए, क्योंकि सभी लक्षणों को मात्र एक ही दृष्टि के माध्यम से नहीं जा सकता है। 1. सापेक्षतावादी
दार्शनिक दृष्टि से जैन संस्कृति सापेक्षतावादी है जिसकी अभिव्यक्ति अनेकान्तवाद. वाद तथा अहिंसावाद के रूप में हई है। दर्शन के क्षेत्र में परम तत्व पर विचार किया जाता है। जैन चिंतकों के अनुसार परम तत्त्व को कोई सामान्य व्यक्ति निरपेक्षत: नहीं जान सकता है, क्योंकि उसके अनंत लक्षण होते हैं। जो भी व्यक्ति उसे जानता है अपनी दृष्टि से जानता है, अपनी अपेक्षा से जानता है। अनेकान्तवाद को स्याद्वाद के माध्यम से व्यक्त किया जाता है और उसका व्यावहारिक रूप अहिंसावाद के पालन में देखा जाता है। 2. समन्वयवादी
सापेक्षता के आधार पर ही जैन दर्शन ने सामान्य-विशेषवाद तथा नित्यानित्यवाद का प्रतिपादन किया है, जिससे समान्यतया नित्यता को मानने वाले अद्वैत वेदान्त तथा विशेष और अनित्य को मानने वाले बौद्ध दर्शन में समन्वय होता है। 3. अनीश्वरवादी
धार्मिक दृष्टि से जैन संस्कृति अनीश्वरवादी है। ईश्वरवाद में ईश्वर ही परम तत्व होता है, जो सृष्टिकर्ता, पालनकर्ता तथा संहारकर्ता होता है। विश्व में जो कुछ होता है, वह ईश्वर की इच्छा से होता है। आवश्यकतानुसार अपनी सृष्टि की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए ईश्वर अवतरित भी होता है। जैन धर्म न तो ईश्वर की संस्कृति में विश्वास करता है और न अवतारवाद में ही। जैन परम्परा में सबकुछ कर्मानुसार होता है। चूंकि विश्व अनादि और अनन्त है, इसलिए इसे ईश्वर जैसे सृष्टिकर्ता की आवश्यकता नहीं होती है। 4. स्वावलम्बनवादी
__ आलम्बन की दृष्टि से जैन संस्कृति स्वावलम्बनवादी है। क्योंकि ईश्वर को मानने वाला परावलम्बी हो जाता है। वह पूर्णतः ईश्वर पर आधारित होता है। किन्तु ईश्वर की सत्ता में विश्वास न करने के कारण जैन संस्कृति स्वावलम्बी है। स्वावलम्बी व्यक्ति तब होता है. जब अपनी शक्ति में विश्वास करता है। जैन परम्परावादी मानवीय शक्ति में विश्वास करता है 5. मानवतावादी
मानव अपनी साधना के बदौलत लौकिक एवं पारलौकिक उपलब्धियों को अर्जित कर सकता है। इसलिए जैन मतावलम्बी मानवतावादी होते हैं, वे मानव शक्ति को अपनाकर जीवन का विकास करते हैं।
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