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________________ 304 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ 'अर्धनारीश्वर' एवं 'अर्धांगिनी' की मान्यताएं स्थापित हैं। यद्यपि कहीं-कहीं कुछ विचार ऐसे अवश्य मिलते हैं जिनसे नारी जाति की अवहेलना का बोध होता है, परन्तु नारी को सामान्य सम्मान देने के साथ ही उसे पूजने की बात भी बलपूर्वक कही गई है। मनु ने कहा है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवत्व स्थापित होता है। जिस कुल में नारी की पूजा नहीं होती है वहाँ देवता अप्रसन्न होते हैं और सभी कार्यों में असफलता ही मिलती है। कुल में स्त्रियां जब कष्ट पाती हैं तब कुल का नाश होता है और कुल की स्त्रियों सन्न रहने से कुल का विकास होता है। अतः अपने कुल का कल्याण चाहने वाला व्यक्ति हमेशा नारियों का सत्कार करता है। - भारतीय संस्कृति की जैन परम्परा में जीव पर्यन्त के सुख-दुःख पर विचार किया गया है। बौद्ध परम्परा की महायान शाखा निर्वाण को तब तक पूरा नहीं मानती है जबतक सबके सब दुःख से मुक्त नहीं हो जाते हैं। ये सभी भारतीय संस्कृति की व्यापक दृष्टि के ही परिचायक हैं। भारतीय संस्कृति की शाखाएँ प्रधानतः भारतीय संस्कृति की दो शाखाएं हैं1. वैदिक परम्परा वैदिक परम्परा वेदों पर आधारित है। वेदों पर आधारित होने के कारण ही इसका नामकरण वैदिक परम्परा हुआ है। वेद चार हैं। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद। वेदों की भाषा संस्कृत है। वैदिक परम्परा ईश्वरवादी तथा यज्ञवादी है। इस परम्परा में ब्राह्मण ग्रन्थ तथा ब्राह्मणवर्ण की प्रधानता होने के कारण इसे ब्राह्मण परम्परा भी कहते हैं। इसे मानने वाले अपने को मूलतः आर्य मानते हैं। अतः इस परम्परा को आर्य परम्परा के नाम से भी सम्बोधित कर सकते हैं। इसे आजकल हिन्दू परम्परा के नाम से भी जानते हैं। क्योंकि मुसलमानों के आगमन के बाद इसे इस्लाम परम्परा से भिन्न बताने के लिए हिन्दू परम्परा कहा गया। एक मान्यता यह भी है कि भारत में सिन्धुघाटी सभ्यता सबसे प्राचीन मानी जाती है। उसी से सम्बंधित होने के कारण हिन्दू शब्द बना। सिन्धु शब्द समय के प्रवाह में 'इन्दु' बना और इन्दु से 'हिन्दू' बन गया। अब हिन्दू एक प्रचलित शब्द है और यह वैदिक परम्परा के लिए व्यवहार में आता है। 2. श्रमण परम्परा प्राचीनकाल से श्रमण परम्परा भारतीय संस्कृति की स्वतंत्र शाखा के रूप में विराजमान है। शोचयन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्। न शोचयन्ति तु यत्रता वर्धते तद्धि सर्वदा।।57।। तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छाद नाशनैः। भूतिकामैनरैनित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च ।।59॥ - मनुस्मृति, अध्याय-3 श्रमण परम्परा में क्षत्रियों को प्रधानता प्राप्त है। जिस तरह वैदिक परम्परा में ब्राह्मणों की प्रधानता के कारण उसे ब्राह्मण परम्परा कहते हैं ठीक उसी तरह श्रमण परम्परा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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