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जैन संस्कृति
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आह्वान पर मनुष्यता की कितनी धाराएँ दुर्बार वेग से बहती हुई कहाँ-कहाँ से आयीं और इस महा समुद्र में मिलकर खो गयीं। यहाँ आर्य हैं, यहाँ अनार्य हैं, यहाँ द्रविड़ और चीनवंश के लोग भी हैं। शक्, ह्यूण, पाठान और मोगल, न जाने कितनी जातियों के लोग इस देश में आये और सबके सब एक ही शरीर में समाकर एक हो गये। समय-समय पर जो लोग रज की धारा बहाते हुए उन्माद और उत्साह में विजय के गीत गाते हुए रेगिस्तान को पार कर एवं पर्वतों को लांघकर इस देश में आये थे, उनमें से किसी का भी अलग अस्तित्व नहीं है। वे सब मेरे भीतर विराजमान हैं। मुझसे कोई भी दूर नहीं है। मेरे रूप में सबका सुर ध्वनित हो रहा है। (5) समन्वयवादी
भारतवर्ष में विश्व के विभिन्न भागों से अनेक जाति, धर्म एवं प्रथा के लोग आए और यहाँ की उदारता एवं सदाशयता ने उन लोगों को अपने में समाहित कर लिया। वे सबके सब समन्वित हो गए जिससे एक उन्मुक्त विशाल संस्कृति का रूप खड़ा हुआ जो आज की भारतीय संस्कृति है। "यह आग्रह बिल्कुल निस्सार है कि हिन्दुओं का सारा धर्म और सारी संस्कृति वेदों से निकली है। यह अभिमान व्यर्थ है कि जो जातियाँ आज वनों में रहती हैं अथवा जो सवर्ण समाज के जूतों के पास बैठी हुई हैं, उनके बायें-दायें से आर्यों ने कोई भी ज्ञान अथवा धर्म का कोई उपकरण उधार नहीं लिया। आर्यों के आने के पूर्व भारत असभ्य था तथा धर्म और सभ्यता यहाँ आर्यों ने फैलायी यह भी मिथ्या अहंकार है, क्योंकि सभ्यता में द्रविड़ जाति के लोग आर्यों से बढ़े-चढ़े थे और शरीर से हारकर भी, संस्कारों के द्वारा उन्होंने आर्यों को प्रभावित किया। .......... जिसे हम भारतीय संस्कृति कहते हैं वह आदि से अन्त तक न तो आर्यों की रचना है और न द्रविड़ों की, प्रत्युत उसके भीतर अनेक जातियों के अंशदान हैं।4। (6) धार्मिकता
भारतवर्ष धर्म प्रधान देश है। यहाँ के लोग धर्मभीरु होना पसन्द करते हैं। यहाँ का धर्म मात्र समादाय तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें बाहरी व्यापकता एवं आन्तरिक गहनता भी देखी जाती है। धर्म भारतीय जीवन की बहुत बड़ी कसौटी है। धर्मपथ पर चलना, धर्माचरण के माध्यम से जीवन व्यतीत करना, धर्म पालन के लिए जीवन तक का बलिदान कर देना यहाँ के लोगों की विशेषता है। भारतीय जीवन के सभी कर्म धर्म से ही नियंत्रित होते हैं। धर्मात्मा ही महात्मा होता है और महात्मा ही अपनी साधना के बल पर परमात्मा बन जाता है। भारतीय धर्मदृष्टि भारत वासियों को संकुचित भावना से ऊपर उठकर लोक-कल्याण की ओर प्रेरित करती है। अतः इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय संस्कृति धर्म प्रधान है। (7) व्यापक दृष्टि
भारतीय संस्कृति की व्यापक दृष्टि ने न केवल बाहरी आगन्तुकों एवं आक्रमणकारियों को ही सम्मान एवं स्नेह दिया है, बल्कि मानव जीवन के दो पक्षों- स्त्री तथा पुरुष को भी समानता के स्तर पर लाने का प्रयास किया है। इस संस्कृति में
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