SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन संस्कृति अनेकता में एकता', यह उक्ति भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में बहुत ही प्रसिद्ध है, क्योंकि शत-प्रतिशत यह इस पर लागू होती है। इसकी समन्वय वादिता में इसकी एकता तथा अनेकान्तवादिता में अनेकता समाहित है। दिनकर जी ने अपनी रचना 'संस्कृति के चार अध्याय' में लिखा है 301 " सहिष्णुता, उदारता, सामासिक संस्कृति, अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और अहिंसा, ये सब एक ही सत्य के अलग-अलग नाम हैं। असल में यह भारतवर्ष की सबसे बड़ी विलक्षणता का नाम है जिसके अधीन यह देश एक हुआ और जिसे अपनाकर सारा संसार एक हो सकता है। अनेकान्तवादी है जो दुराग्रह नहीं करता। अनेकान्तवादी वह है जो अपने पर भी सन्देह करने की निष्पेक्षता रखता हैं अनेकान्तवादी वह है जो समझौतों को अपमान की वस्तु नहीं मानता। अशोक और हर्षवर्धन अनेकान्तवादी थे, जिन्होंने एक धर्म में दीक्षित होते हुए सभी धर्मों की सेवा की। अकबर अनेकान्तवादी था, क्योकि सत्य के सारे रूप उसे किसी एक धर्म में दिखाई नहीं दिए एवं सम्पूर्ण सत्य की खोज में वह आजीवन सभी धर्मों को टटोलता रहा। परमहंस रामकृष्ण अनेकान्तवादी थे, क्योंकि हिन्दू होते हुए उन्होंने इस्लाम और ईसाइयत की साधना की थी। और गाँधीजी का तो सारा जीवन ही अनेकान्त का उन्मुक्त अध्याय था | यदि हम भारतीय संस्कृति के लक्षणों की ओर ध्यान दें तो स्पष्टतः दिनकर जी के द्वारा इंगित इसकी विलक्षणता हमारे सामने आ जाएगी। भारतीय संस्कृति की विशेषताएँ (1) प्राचीन आधार, (2) स्थायित्व, (3) सहिष्णुता, (4) आत्मसात करने की समता, (5) समन्वयवादी दृष्टि, (6) धार्मिकता एवं (7) व्यापक दृष्टि । (1) प्राचीन आधार Jain Education International भारतीय संस्कृति का इतिहास सहस्रों वर्षों का है। विश्व के अनेक देश जब असभ्य और अशिक्षित थे तभी भारतवर्ष में धार्मिक राजनीतिक, आर्थिक विविध व्यवस्थाएँ स्थापित हो चुकी थी। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि वैदिक काल एवं उत्तर वैदिक काल में भारतीय संस्कृति का विकास हुआ। किन्तु वैदिक काल जिसमें आर्य संस्कृति प्रकाशित हुई, से पहले भी भारत में सिन्धुघाटी सभ्यता थी । प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी का समाज बहुत ही सभ्य एवं संस्कृत था। इस तरह भारतीय संस्कृति का प्रारम्भ सिन्धु घाटी सभ्यता से हुआ, ऐसा माना जाता है। आर्यों ने भारत में आकर अपना वर्चस्व जमाया, किन्तु ऐसा नहीं माना जा सकता कि आर्यों के आगमन से ही भारतीय संस्कृति शुरू होती है। यदि उनके यहाँ आने के पूर्व यहाँ कोई संस्कृति नहीं होती, कोई समाज नहीं होता तो फिर उन्हें विकट संघर्ष करने की क्या आवश्यकता होती । इतिहासकारों ने यह प्रमाणित किया है कि आर्यों को अपने को भारतवर्ष में स्थापित करने के लिए वर्षों संघर्ष करना पड़ा था। इससे यह निःसन्देह ज्ञात होता है कि भारतीय संस्कृति का आधार अति प्राचीन है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy