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अस्त्र-शस्त्र बनाए तथा दूर संचार की भी व्यवस्था की। ये सभी सभ्यता के रूप हैं। मानव की आवश्यकताएं बढ़ती गईं और उनकी पूर्ति करके वह सभ्य बना और जैसे-जैसे वह सभ्य बना उसकी आवश्यकताएं भी बढ़ती गई। इस तरह मानव का बाहरी जीवन विकसित हुआ एवं बाहरी के विकास के साथ-साथ आन्तरिक जीवन भी उत्कृष्टता को प्राप्त करता गया। मानव जीवन का बाह्य पक्ष भौतिक है, शारीरिक है, जबकि आन्तरिक पक्ष आध्यात्मिक है, आत्मिक है।
स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
अब हम संक्षिप्त में कह सकते हैं कि मानव जीवन का बाह्य पक्ष जो शारीरिक है तथा भौतिक है, सभ्यता है और आन्तरिक पक्ष जो आत्मिक है, आध्यात्मिक है, संस्कृति है । किन्तु इन दोनों को बिल्कुल अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता है। क्योंकि ये दोनों एक-दूसरी की सहयोगिनी हैं। नेहरूजी ने तो यहाँ तक कहा है कि सभ्यता का भीतर से उठना संस्कृति है।
विश्व की प्राचीन संस्कृतियाँ
विश्व की प्राचीन संस्कृतियों में निम्नलिखित उल्लेखनीय हैंप्राचीन मिश्र की संस्कृति
(1)
(2)
प्राचीन बैबिलोनियां की संस्कृति
(3) प्राचीन आसीरिया की संस्कृति
प्राचीन यूनान की संस्कृति प्राचीन रोम की संस्कृति
प्राचीन चीन की संस्कृति
(4)
(5)
(6)
(7) प्राचीन भारत की संस्कृति प्राचीन भारतीय संस्कृति
विश्व की अन्य प्राचीन संस्कृतियों एवं सभ्यताओं की तरह भारत की संस्कृति तथा सभ्यता का श्रीगणेश नदी की घाटी में ही हुआ । सिन्धु नदी की घाटी में भारतीय संस्कृति का जन्म हुआ लेकिन इसके विकास को देखते हुए इसे कई रूपों में देखा जाता है। यहाँ बाहर से विभिन्न लोग अपनी-अपनी संस्कृतियों के साथ आते गए और स्थापित होते गए। अतः भारतीय संस्कृति के प्रगति पथ पर कभी संघर्ष तो कभी समन्वय देखे जाते हैं। साथ ही विभिन्न स्तरों पर इसे अलग-अलग नामों से सम्बोधित किया गया है जैसेसिन्धु घाटी की संस्कृति एवं सभ्यता ऋग्वैदिक संस्कृति एवं सभ्यता
उत्तर वैदिक काल की संस्कृति एवं सभ्यता
(1)
(2)
(3)
(4)
ई. पूर्व छठी शताब्दी की संस्कृति एवं सभ्यता
इसमें कोई शक नहीं कि अध्ययन की दृष्टि से ये नाम महत्वपूर्ण हैं किन्तु ऐसा
नहीं कहा जा सकता कि भारतीय संस्कृति इनके बीच विभाजित है। इन सभी के मिले हुए रूप की समन्वित स्थिति को भारतीय संस्कृति नाम दिया गया है।
भारतीय संस्कृति समन्वयवादी तथा अनेकान्तवादी 'एकता में अनेकता तथा
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