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________________ जैन संस्कृति 299 जर्मन दार्शनिक कान्ट (Kant) तथा फिश्टे (Fichte) ने संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा है कि स्वातंत्रय ही इसका मूल तत्व है। महान् लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किए गए प्रयोग को संस्कृति कहते हैं। राबर्ट बीरस्डीज (Robert Bierstedt) ने संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा है कि संस्कृति एक जटिल सम्पूर्णता है जिसमें वे सभी चीजें समाहित होती हैं जिनपर व्यक्ति विचार करता है, काम करता है और समाज के सदस्य होने के नाते जिन्हें अपने पास रखता है। अर्थात् संस्कृति एक वह सम्पूर्णता है जिसमें व्यक्ति के आचार-विचार समाहित होते हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैकाइवर तथा पेज (Macaiwer and Page) के अनुसार, संस्कृति व्यक्ति के रहने, चिन्तन करने, दैनिक कार्य, कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन तथा आनन्द उसकी प्रकृति की अभिव्यक्ति है। पाश्चात्य दार्शनिकों के द्वारा दी गई उपर्युक्त परिभाषाओं पर विचार करने पर संस्कृति के विषय में निम्नलिखित बातें प्रकाश में आती हैं(क) संस्कृति एक सम्पूर्णता है जिसमें मानव जीवन के उत्कर्ष से सम्बंधित सभी आचार-विचार, सामग्रियां समावेशित रहती हैं। (ख) संस्कृति मानवीय प्रकृति की अभिव्यक्ति है। (ग) संस्कृति प्रयोग, प्रयास एवं साधन हैं जिनसे मानव जीवन परिष्कृत होता है। संस्कृति और सभ्यता (Culture and Civilization) जब भी संस्कृति की बात होती है तब स्वभावतः सभ्यता भी सामने आ जाती है क्योंकि इन दोनों के बीच बहुत ही निकट का सम्बन्ध है। कभी तो कुछ लोग इन दोनों को समानार्थी मानकर एक जैसा ही इन दोनों का प्रयोग करते हैं। लेकिन 17वीं एवं 18वीं शताब्दियों के विद्वानों ने इन्हें अलग-अलग अर्थ देने का प्रयास किया है। उनलोगों ने ऐसा माना है कि शिष्टाचार और मस्तिष्क के प्रशिक्षण से संस्कृति सम्बंधित है तथा अर्थ, कला एवं विज्ञान से सभ्यता सम्बंधित है। सभ्यता शब्द 'सभा' से सम्बंधित है। जो लोग नागरिक तथा राजनीतिक सभा के सदस्य होते हैं उन्हें सभ्य कहा जाता है। सभ्य से 'सभ्यता' शब्द बना है। इसके लिए अंग्रेजी में 'सिविलाइजेशन' (Civilization) शब्द प्रयोग किया जाता है। सामन्तशाही युग और अन्धकार युग की अवस्था से अपने को उत्कृष्ट एवं भिन्न बताने के लिए फ्रांस के तर्कवादी लोगों ने अपने लिए सर्वप्रथम इस शब्द का व्यवहार किया था। क्योंकि उन लोगों को अपनी बुद्धि पर गर्व था। वे अपने को सभ्य (Civilized) मानते थे, क्योंकि वे बुद्धिमान थे, तर्ककुशल थे। अपने से पहले वालों को वे अकुशल और असभ्य मानते थे। मानव अपने प्रारम्भिक जीवन से प्राकृतिक विपदाओं से अपनी सुरक्षा के लिए संघर्ष करता आ रहा है। उसने सर्दी-गर्मी से बचने के लिए मकान और वस्त्र बनाए, भोजन के लिए खेती शुरू की और अन्न उपजाए, रोगादि से बचने के लिए औषधियों की खोज की। आवागमन के लिए साइकिल, मोटर, रेल, जहाज बनाए, शत्रुओं से रक्षा के लए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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