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________________ 298 स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ से पुकारते हैं। संस्कृति आत्मा है और सभ्यता उसका बाह्य रूप है । इस परिभाषा में यह बताया गया कि संस्कृति का सम्बन्ध मात्र वहीं से नहीं होता है जहां की वह संस्कृति कही जाती है, बल्कि यह सम्पूर्ण विश्व से सम्बंधित होती है। साथ ही यह भी कहा गया है कि संस्कृति में मानव के आचार और विचार दोनों ही समाहित होते हैं। विश्व प्रसिद्ध जैन सन्त एवं चिन्तक गणाधिपति तुलसीजी ने संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा है"संस्कृति तो मानवीय संस्कारों का प्रवाह है, जो जीवन की अविच्छिन्न परम्परा को लिए बहता रहता है"। अर्थात् संस्कृति एक प्रवाह है जिससे मानवीय संस्कार अबाध गति से प्रवाहित होते हैं। पं. दलसुख मालवणिया ने भी संस्कृति को परिवर्तनशील मानते हुए कहा है" संस्कृति का इतिहास देखा जाय तो यह स्पष्ट होता है कि जबतक वह परिवर्तनशील प्रवाह के रूप में प्रगतिशील है तबतक वह संस्कृति नाम को सार्थक करती है। किन्तु जैसे ही प्रवाह की गति रुक जाती है, परिवर्तन रुक जाता है, प्रगति का अवरोध हो जाता है, वह संस्कृति नाम के योग्य नहीं रहती, बल्कि वह घातक रूढ़ियों का रूप धारण कर लेती है और रूढ़ियां मानव जाति को संस्कृत करने के बजाय और रोग ग्रस्त मानस बाली बना देती है । इसका मतलब है कि संस्कृति की सत्ता उसकी प्रगतिशीलता में ही निहित होती है। संस्कृति की उत्पत्ति एवं विकास को बताते हुए डॉ. सम्पूर्णानन्द ने लिखा है- " संस्कृति का विकास ज्यामिति की सरल रेखा नहीं है। सैंकड़ों वर्षों की प्रगति के बाद देशों और महाद्वीपों पर अन्धकार-सा छा जाता है। सारी बौद्धिक उन्नति उड़ जाती है, अश्रद्धा, निरुत्साह, अन्धविश्वास प्रगति के सोते को बन्द सा कर देते हैं। परन्तु वह सब * होते हुए भी संस्कृति का प्रदीप बुझता नहीं है। वह किसी न किसी कोने में टिमटिमाता रहता है और अनुकूल परिस्थिति आने पर फिर से उद्दीप्त हो उठता है । " इसका मतलब है कि संस्कृति कोई ऐसी चीज नहीं है जो शीघ्र उत्पन्न कर दी जाए और शीघ्र मिटा दी जाय। यह अन्तः शलिला के रूप में प्रवाहित होती रहती है। यह उस समय भी समाप्त नहीं होती है जब इसे समाप्त मान लिया जाता है। भारतीय चिन्तकों के द्वारा दी गई संस्कृति की परिभाषाओं के आधार पर संक्षेप में संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा जा सकता है कि "सम्पूर्ण मानवता के विकास एवं विश्व के कल्याण के लिए जो भी आचार और विचार किये जाते हैं, वे संस्कृति हैं । " संस्कृति पाश्चात्य जगत में संस्कृति के लिए कल्चर (culture) शब्द व्यवहृत होता है। इसका सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश दार्शनिक फ्रान्सिस बेकन (Francis Bacan) ने किया था। जर्मनी में कल्चर शब्द प्रथम प्रयोग करने वाले हर्डर (Herder) हो गए हैं। ब्रिटेन में कल्चर को हार्टीकल्चर (Horticulture) तथा जर्मनी में एग्रीकल्चर (agriculture) से सम्बद्ध देखा जाता है। क्योंकि ब्रिटिश परम्परा में मानवीय विकास की तुलना भूमि और फूल के विकास से तथा जर्मन परम्परा में विकसित फल से की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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