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________________ 296 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ ने तो अपनी कूटस्थ कथाकृति 'वसुदेवहिण्डी' में मगध, मिथिला और अंग की चम्पा का साग्रह वर्णन किया है, किन्तु वैशाली या कुण्डपुर या फिर लिच्छवि या वज्जिसंघ का यत्किचित् उल्लेख भी नहीं किया है। प्राचीन ऐतिहासिक ग्रन्थों में इस बात की बार-बार चर्चा आई है कि वैशाली के महावीर-युग के वज्जिसंघ के लिच्छवि सदस्य इतने अनुशासित, निर्भय और पराक्रमी थे कि वे अपने शत्रओं को तच्छ समझते थे। वे नियमित रूप से महासभा में सम्मि विचार-विमर्श करते तथा संघ-नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वज्जिसंघ के सदस्यों की यह एकसूत्रता मगध-साम्राज्य के लिए ईर्ष्या का कारण थी, यह बात बुद्ध और उनके प्रधान शिष्य आनन्द के सुप्रसिद्ध पारस्परिक संलाप के माध्यम से भी स्पष्ट होती है। ऐतिहासिक स्रोत से यह सूचना मिलती है कि महावीर युग की वैशाली के लिच्छवि उत्तर-पूर्व भारत की महाबलशाली, सुशिक्षित, सम्पन्न और कलाप्रेमी क्षत्रिय जाति के थे। तभी तो उन्होंने विदेह-क्षेत्र की ग्राम सुन्दरियों की कला-प्रतियोगिता के माध्यम से अम्बपाली को निर्वाचित कर उसे वैशाली की नगरवधू या राजनर्तकी के पद पर प्रतिष्ठित किया था और जब, मगध की सेना वैशाली पर चढ़ आई थी, तब युद्धोन्माद में आकर रणभूमि में सिंहनाद करने वाले सैनिकों में अम्बपाली ने ही सबसे आगे बढकर वज्जियों को शत्र-संहार के लिए ललकारा था। संकेत मिलता है कि महावीर-कालीन वैशाली की नारियाँ केवल कला विलासिनी ही नहीं थीं, अपितु राष्ट्र रक्षा के लिए अपनी जान की बाजी लगा देने में भी सबसे आगे रहती थी, साथ ही वे तपस्साधना के लिए भोग-विलास को पटान्त-लग्न तृण की तरह तुच्छ समझकर तिलांजलि दे देती थीं। इस सन्दर्भ में चम्पा से वैशाली में आकर अपने विशाल भिक्षुणी संघ के साथ धर्म-विहार करने वाली महावीर की धर्मशिष्या चन्दन बाला तथा वैशाली गणराज्य की अन्तिम अधिष्ठात्री कुमारदेवी के नाम अनुशंसनीय हैं। भगवान महावीर की माता विदेह (वैशाली) की थीं इसलिए महावीर को वैदेही-पुत्र (वैशालीक) के रूप में सम्बोधित किया जाता था। इससे यह सहज ही अनुमेय है कि महावीर के समय विदेह लिच्छवि शासन के अन्तर्भुक्त था। अतएव आत्म प्रकाश महावीर के निर्वाण की वेला में विदेह के नवमल्लियों के साथ ही लिच्छवियों ने भी दीपोत्सव का आयोजन किया था। प्राचीन इतिहास के अतिरिक्त परातन जैन साहित्य से इस बात का पता चलता है कि ईसा-पूर्व पाँचवीं-छठी शती, अर्थात् महावीर के समय में वैशाली में लिच्छवियों का राज्य था और वैशाली की सर्वतोमुखी समृद्धि परवान चढ़ी हुई थी। इतना ही नहीं, महावीर के समय वैशाली में लिच्छवियों ने ही संसार की अतिसभ्य शासन-व्यवस्था गणराज्य की, यानी गणतंत्र की स्थापना की थी, जिसमें वंश-परम्परा से कोई राजा नहीं होता था, वरन् जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि ही राजा माना जाता था। अतएव, आज भी महावीर-युग की वैशाली के लिच्छवियों को ही गणतंत्रात्मक राज्य शासन का प्रथम प्रतिष्ठाता के रूप में स्मरण किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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