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महावीर-युग की वैशाली
साहित्यवाचस्पति डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव*
__ आगम-परवर्ती जैन ग्रन्थकार महावीर-युग की वैशाली का नामोल्लेख पूर्वक वर्णन में प्रायः उदासीन हैं। यही कारण है कि महावीर-चरित-विषयक ग्रन्थों में वैशाली का नाम-संकेत बहुत ही कम हुआ है। वैशाली की जगह वहाँ अवस्थित महावीर की जन्मस्थली कुण्डपुर (कुण्डलपुर या क्षत्रिय कुण्डग्राम) या फिर विदेह-क्षेत्र का चित्रण उपलब्ध होता है। इसके विपरीत, बौद्ध ग्रन्थों में नाम कीर्तन-पूर्वक वैशाली की बहुत ही मनोरम सांस्कृतिक और ऐतिहासिक, साथ ही राजनयिक झांकी-प्रस्तुत की गई है, जिसमें बुद्ध और अम्बपाली की हृदयावर्जक कथा, प्रवृत्ति और निवृत्ति, राग और विराग के अन्तर्द्वन्द्व की नन्दतिक भावना से ततोऽधिक ऊर्जस्वल होकर उभरी है। इस प्रकार वैशाली महावीर और बुद्ध दोनों महापुरुषों की समयुगीन संस्कृति को युगपत् अभिव्यंजना करने वाली ऐतिहासिक नगरी के रूप में लब्धप्रतिष्ठ है।
आधुनिक युग में अन्तर-राष्ट्रीय ख्याति और महातीर्थ के गौरव से सम्पन्न वैशाली पुरायुग, अर्थात् महावीर के युग में लिच्छवियों की राजधानी थी, साथ ही भारत के तत्कालीन सोलह महाजनपदों में, शक्तिशाली गणतंत्रात्मक बज्जिसंघ के शासन-केन्द्र के रूप में उसकी मान्यता थी। खुष्टपूर्व पंचम-षष्ठ शती के जैनागमों में वैशाली से सम्बद्ध अनेक ऐसे ऐतिहासिक सूत्र मिलते हैं, जिनसे वैशाली की विशालता संकेतित होती है। हिंसावादी एकान्तियों के लिए अहिंसावादी 'अनेकान्त' की जयपताका फहरानेवाले पराचेतना से संवलित वैशाली-विभूति महावीर को 'सूत्रकृतांग, में 'वेसालिय' कहा गया है 'एवं से उदाहु अनुत्तरमुणी अनुत्तरदंसी अनुत्तरणाणदंसनधरे अरहा णायपुत्ते भगवं वेसालिए विआहिए त्ति बेमि।' इस प्रकार, वैशाली पुत्र महावीर स्वामी के लिए 'वेसालिय' (वैशालीक) विशेषण 'उत्तराध्ययन' आदि विभिन्न जैनागमों में भी भूयशः आवृत्त हुआ है।
'जैनकल्पसूत्र' के अनुसार, वैशाली विदेह की राजधानी थी, जिससे महावीर स्वामी का घनिष्ठ सम्बन्ध था। इस ग्रन्थ के अनुसार, महावीर विदेहवासी थे और उनकी माता का नाम विदेहदत्ता था। उन्होंने अपने जीवन के बहुमूल्य तीस वर्ष वैशाली में व्यतीत किये थे। पन्द्रहवीं शती के जैन आचार्य भट्टारक सकलकीर्ति ने संस्कृत-निबद्ध
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