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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची 1. तत्वार्थसूत्र-आ. उमास्वामी, 2/8 2. वही, 2/10 3. वही, 2/12
वही, 2/14 वही, 2/14 एषां पृथिव्यादीनामार्षे चातुर्विध्यमुक्तं प्रत्येकम्। तत्कथमिति चेत्? उच्यते, पृथ्वी, पृथ्वीकायः पृथ्वीकायिकः पृथ्वी जीव इत्यादि। सर्वार्थसिद्धि, आ. पूज्यपाद, द्वितीय अध्याय, प्र.-125-125, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, चौदहवाँ संस्करण-2006 पुढवी य वलुगा सक्करा य उबले सिला य लोणे य। अयं तेव तउ य सीस य रूप्प सुवण्णे य वइरे य।।-206 हरिदाले हिंगुलए मणोसिला सस्स गंजणपवाले य अब्भपडलब्भवालुय वादरकाया मणि विधिय।। 206 गोमन्झगे य रुजगे अंके फलहे य लोहिदंके य। चंदप्पभ वेरुलिए जलकंते सूरकते य ।। 208 गेरुय चंदण वव्वग वयमोए तह मसारगल्ले य। ते जान पुरुवि जीवा जणित्ता परिहर देव्वा ।। 209 मलाचार- आ. वट्टकेर स्वामी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली। 'अहिंसा एवं पर्यावरण संरक्षण सिद्धांतों का अक्षय स्रोत"- डॉ. राजाराम जैन, प्रकाशन श्री
मोहनलाल चन्द्रवती जैन चैरिटेबिल ट्रस्ट, नई दिल्ली, पृ.-197 9. वही, पृ.-199 10. अग्निः त्रिकोणः रक्तः, ज्ञानसार श्लोक, 57, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ.-35, भारतीय.
ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली। 11. इंगाल जाल अच्ची मुम्मुर सुद्धागणी य अगणी य।
ते जाण तेउजीवा जाणिता-परिहरेदव्वा।। मूलाचार- आ. वट्टकेर-गाथा-224, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली। वादुब्भामो उक्कलि मंडलि गुंजा महाघण णू य।
ते जाण वाउजीवा जाणित्ता-परिहरेदव्वा।। मूलाचार-आ. वट्टकेर-गाथा, 535 13. व्यसहस्रवरिस वायुतणुंए- महाकवि पद्म-पदम्-1/440 एवं 'अहिंसा एवं पर्यावरण संरक्षण
सिद्धान्तों का अक्षयस्रोत-जैन धर्म' तथा 'लोकनायक वर्द्धमान महावीर।' 14. प्रत्येक पृथक् शरीरयेषां ते प्रत्येक शरीराः खदिरादयो वनस्पतयः, धवलापुस्तक 1/1.1/सूत्र
41/26816 15. यावन्ति प्रत्येक शरीराणि तावन्ति एव प्रत्येक वनस्पति जीवाः तत्र प्रतिशरीरं एकैकस्य
प्रतिज्ञानात्-गोम्मटसार जीवकाण्ड-नेमीचन्द्राचार्य गाथा-186/423/14 16. क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश-भा. ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, पृ.-500
12.
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