SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनदर्शन में जीव और पर्यावरण चेतना है। जैन धर्म कहता है कि बेवजह पेड़-पौधों, मनुष्यों, पशुओं को मत काटो, मत मारो, क्योंकि उनमें जीव है और जीवों की हिंसा करने से, वध करने से पाप का बन्ध होता है। जैन दर्शन के साथ-साथ अन्य दर्शन भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि- मनुष्य जैसा दूसरों के साथ करेगा वैसा उसके साथ भी होगा और उसे वैसा ही फल मिलेगा। अतः अहिंसा प्रधान देश में जीवों की हत्या न करें, क्योंकि इससे पाप के बन्ध के साथ-साथ पर्यावरण असन्तुलित होता है और जब पर्यावरण असन्तुलित होगा तो जीवन-यापन मुश्किल हो जायेगा। (ii) नैतिक दृष्टि से पर्यावरण चेतना Jain Education International 289 वर्तमान समय में मनुष्य समस्याओं से सराबोर है। जहाँ देखो, जब देखो मनुष्य को समस्या ही दिखाई देती है। जब किसी वस्तु का आवश्यकता से अधिक अथवा बेवजह दोहन किया जाता है तब समस्या होती है और प्रत्येक समस्या को उत्पन्न किसी और ने नहीं, स्वयं मनुष्य ने किया है। गांव से लेकर महानगरों में जल की विकट समस्या, बिजली की समस्या, रसोई गैस की समस्या, साग-सब्जी, वनस्पति की समस्या, बाढ़ की समस्या, भूकम्प - सुनामी की समस्या इत्यादि ये सभी समस्यायें मनुष्य द्वारा ही सृजित हैं और इनका समाधान भी मनुष्य ही कर सकता है। जैसे मनुष्य को आवश्यक है नहाना, कपड़े धोना आदि । मनुष्य को नहाने के लिए पानी चाहिए मान लो दो बाल्टी, परन्तु यदि दो बाल्टी की जगह तीन-चार बाल्टी पानी गिराये तो इससे क्या होगा? पानी की कमी आयेगी। जैन दर्शन ने एक बूंद पानी में अनन्त जीव बताये हैं। वैज्ञानिकों ने भी यही सिद्ध किया है। इसी प्रकार वनस्पति, पेड़-पौधों को भी न काटें, क्योंकि पेड़ों को काटने से बाढ़ की समस्या, वर्षा की कमी एवं तापमान में विभिन्नता आदि। हक्सले ने कहा है कि किसी पशु-पक्षी की मृत्यु का दृश्य देखकर हमलोग मर्माहत हो जाते हैं क्योंकि उसकी यंत्रणा को स्वयं अपनी आंखों से देखते हैं किन्तु वनस्पतियों के जीवन मरण को देखने के लिए तो हमारी दृष्टि लाखों गुनी तेज होनी चाहिए। इसी प्रकार त्रस जीवों को नहीं मारना चाहिए क्योंकि यदि इन क्षुद्र कीड़े-मकोड़े आदि जीवों को मारते हैं तो हिंसा तो होती ही है साथ ही साथ परिस्थिति तंत्र भी बिगड़ता है। हम बेवजह मच्छर-मक्खी आदि को मार देते हैं, परन्तु ये जीव भी परिस्थिति तंत्र के लिए विशेष उपयोगी 1 अन्त में कह सकते हैं कि यदि जैन दर्शन की जीव रक्षा विषयक अवधारणा को स्वीकार करते हुए चलें तो पर्यावरण सम्बन्धी सभी समस्याओं का स्वतः समाधान हो जायेगा। क्योंकि यदि मानव अपने आसपास की वस्तुओं को जीव दृष्टि से देखेगा तो उनकी रक्षा के विषय में भी सोचेगा। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy