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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
इस प्रकार पेड़-पौधे वनस्पति आदि में जीव है और यह जीवत्व की सिद्धि अनादि काल से जैनधर्म कहता आ रहा है और वनस्पति में जीवत्व की सिद्धि सर जगदीश चन्द वसु ने भी की है। एल्डुमस हक्सले ने स्वयं वसु जी की प्रयोगशाला में जाकर देखा है कि वनस्पति भी एक प्राणधारी जीव है। जीव एवं पर्यावरण का सम्बन्ध
हम देखते हैं कि जैन दर्शन की जीव विषयक दृष्टि सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है। जैन दर्शन ने सर्वत्र किसी न किसी अपेक्षा से जीव की सत्ता को स्वीकार किया है। जैन दर्शन ने जहाँ-जहाँ जीव-आत्मा की सत्ता स्वीकार की है वहाँ-वहाँ पर्यावरण भी समाहित है। चाहे भौतिक पर्यावरण हो या जैविक पर्यावरण दोनों ही घटकों में जीवत्व पाया जाता है। भौतिक एवं जैविक पर्यावरण के माध्यम से पर्यावरण का अवभासन होता है और इन दोनों में ही मनुष्य के साथ-साथ प्रकृति के क्रिया-कलाप संचालित होते हैं। यदि हम किसी भी तरह से पर्यावरण के घटकों से छेड़-छाड़ करते हैं तो उसके दुष्परिणाम भुगतने को तैयार रहना पड़ेगा। चाहे एक इन्द्रिय जीव हो या दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय जीव हो यदि इनमें से किसी एक का भी विनाश होता है तो हमारी खाद्य श्रृंखला विघटित हो जायेगी। जिससे हमारा ईकोसिस्टम बिगड़ जायेगा। एक उदाहरण से समझते हैं जैसे मृत पशुओं को गिद्ध, चील आदि खाते हैं जिससे हमारा पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता, लेकिन वर्तमान समय में देखते है कि गिद्ध, चील आदि नहीं दिखाई देते तब मृत पशुओं का क्या किया जाये? और इन मृत पशुओं से विभिन्न प्रकार के रोगादि फैल रहे हैं, वातावरण प्रदूषित हो रहा है।
इसलिये वातावरण को स्वच्छ रखना है तो हमें प्रत्येक प्रकार के जीवों की रक्षा करनी होगी। जीवत्व सिद्धि और पर्यावरण चेतना
पर्यावरण चेतना के सन्दर्भ जीवत्व सिद्धि का कई दृष्टियों से अध्ययन कर सकते हैं, जिससे वर्तमान समाज जागरूक होकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान द सके। (i) आध्यात्मिक दृष्टि से पर्यावरण चेतना (ii) नैतिक दृष्टि से पर्यावरण चेतना (i) आध्यात्मिक दृष्टि से पर्यावरण चेतना मेरी भावना में जुगल किशोर मुख्तार कहते हैं कि
"मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे।
दीन दुःखी जीवों पर मेरे उर से करुणा-स्रोत बहे॥" अर्थात् भावना भाते हुए यहाँ कहा है कि सब जीवों से मेरा मैत्रीभाव रहे तथा दीन दु:खी जीवों पर हृदय से करुणा भाव हो। जैन दर्शन में तो प्रत्येक पदार्थ में जीवत्व की सत्ता स्वीकार की गयी है। जैन धर्म अहिंसा परमो धर्मः और दयामूलो धम्मो के सिद्धांत को स्वीकार करता है। इसके साथ ही 'जीओ और जीने दो' में विश्वास रखता
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