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जैनदर्शन में जीव और पर्यावरण चेतना
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जाने वाला पवन, बहुत रज सहित, गूंजने वाला पवन, पृथ्वी में लगता हुआ चक्कर वाला पवन, गूंजता हुआ चलने वाला पवन, महापवन, घनोदधि वात, घनवात, तनुवात ये वायुकायिक जीव हैं। महाकवि पद्म ने वायुकायिक जीवों की आयु 3000 वर्ष बतलाई
(5) वनस्पतिकायिक जीव- वनस्पति ही जिसका शरीर है वह वनस्पतिकायिक जीव है। वनस्पति अर्थात् पेड़-पौधों को वैदिक ग्रंथों में पूज्यता प्रदान की गई है। यथा- तुलसी, पीपल, बरगद आदि। वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के हैं
(a) प्रत्येक वनस्पति
(b) साधारण वनस्पति (a) प्रत्येक वनस्पति- धवला पुस्तक में कहा है कि जिनका प्रत्येक अर्थात् पृथक्-पृथक् शरीर होता है उन्हें प्रत्येक वनस्पति जीव कहते हैं जैसे- खैर आदि वनस्पति। इसी प्रकार गोम्मटसार जीवकाण्ड टीका में कहा है कि जितने प्रत्येक शरीर हैं, उतने वहाँ प्रत्येक वनस्पति जीव जानने चाहिए, क्योंकि एक-एक शरीर में एक-एक जीव होने का नियम है।
इसी विषय को आधारीकृत्य करके जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश में लिखते हैं कि नित्य खाने-पीने के काम में आने वाली वनस्पति प्रत्येक शरीर है, वह दो प्रकार की हैअप्रतिष्ठित और सप्रतिष्ठित। एक ही जीव के शरीर वाली वनस्पति अप्रतिष्ठित और असंख्यात साधारण शरीरों के समवाय से निष्पन्न वनस्पति सप्रतिष्ठित है। वहाँ एक-एक वनस्पति के स्कन्ध में एक रस होकर असंख्यात साधारण शरीर होते हैं और एक-एक उस साधारण शरीर में अनन्तानन्त निगोद जीव वास करते हैं। सूक्ष्म साधारण शरीर या निगोद जीव लोक में सर्वत्र ठसाठस भरे हुए हैं। परन्तु सूक्ष्म होने से हमारे ज्ञान के विषय नहीं हैं। सन्तरा, आम आदि अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं और आलू, गाजर, मूली आदि सप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पति हैं। (b) साधारण वनस्पति- धवला पुस्तक में कहा है कि जिस कर्म के उदय से एक ही शरीर वाले होकर अनन्त जीव रहते हैं वह साधारण शरीर नामकर्म है। आ. पूज्यपाद कहते हैं कि बहुत आत्माओं के उपभोग का हेतु रूप से साधारण शरीर जिसके निमित्त से होता है वह साधारण शरीर नामकर्म है।
अकलंक देव कहते हैं कि साधारण जीवों के साधारण आहारादि चार पर्याप्तियाँ और साधारण ही जन्म-मरण श्वासोच्छ्वास, अनुग्रह और उपघात आदि होते हैं जब एक के आहार, शरीर, इन्द्रिय और आनपान पर्याप्ति होती है, उसी समय अनन्त जीवों के जन्म-मरण हो जाते हैं। जिस समय एक जीव श्वासोच्छ्वास लेता या आहार करता या अग्नि आदि से उपहत होता है उसी समय शेष अनन्त जीवों के भी श्वासोच्छ्वास, आहार और उपघात आदि होते हैं।
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