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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
(b) तीन इन्द्रिय जीव- जिसमें स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ पाई जाये, वह तीन इन्द्रिय जीव है। जैसे चींटी, चिंटा आदि। (c) चार इन्द्रिय जीव- जिसमें स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियाँ पाई जाये, वह चार इन्द्रिय जीव है। जैसे भौंरा, तितली, मक्खी, मधुमक्खी आदि। (d) पाँच इन्द्रिय जीव- जिसमें स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण से पाँच इन्द्रियाँ पाई जाये, वह पाँच इन्द्रिय जीव है जैसे- मनुष्य, कुत्ता, बिल्ली आदि। (ख) स्थावर जीव- जिनके मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय पाई जाती है वे स्थावर जीव हैं। स्थावर जीव पाँच प्रकार के हैं। (1) पृथ्वीकायिक जीव (2) जलकायिक जीव (3) अग्निकायिक जीव (4) वायुकायिक जीव (5) वनस्पतिकायिक जीव। (1) पृथ्वीकायिक जीव- पृथ्वी ही जिसका शरीर हो, वह पृथ्वीकायिक जीव है। आर्ष में पृथ्वी के चार भेद किये गये हैं। पृथ्वी, पृथ्वीकाय, पृथ्वीकायिक, पृथ्वी जीव।
मूलाचार ग्रंथ में कहा है कि मिट्टी आदि पृथ्वी, बालू, तिकोन, चौकोन, रूप शर्करा, गोल पत्थर, बड़ा पत्थर, लोहा, ताँबा, जस्ता, सीसा, सोना, चाँदी, हीरा, मूंगा, मणि इत्यादि पृथ्वी के भेद हैं। इनमें जीवों को जानकर सजीव का त्याग करें।
डॉ. कामता प्रसाद जैन लिखते हैं कि आधुनिक वैज्ञानिकों की खोजों के अनुसार एक वर्ग जीवित भूमि में लगभग पच्चास लाख कीटाणु रहते हैं जो पृथ्वी की उर्वरा शक्ति तथा उसके खनिजों की वृद्धि में सहायक होते हैं। वह सभी के पोषण के लिए धन, धान्य तथा स्वास्थ्य प्रदान करने वाले फल, वृक्ष, लताएँ, पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियाँ इत्यादि उत्पन्न करते हैं। (2) जलकायिक जीव- जल ही जिसका शरीर होता है, वह जलकायिक जीव है। जलकायिक जीवों के जीवनदायी उपकारों के कारण ही अन्य सभी जीव सुरक्षित हैं क्योंकि जल के बिना न तो कोई जीवित रह सकता है और न ही सुरक्षित रह सकता है। परन्तु वर्तमान समाज जल में जीवत्व को स्वीकार ही कहाँ करती है। जैनदर्शन तो जल की एक बूंद में अनंत जीवों की सत्ता स्वीकार करता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी जल में जीवों की सत्ता स्वीकार की है और पानी की एक बूंद में 36450 सूक्ष्म जीव देखे हैं। (3) अग्निकायिक जीव- अग्नि ही जिसका शरीर हो, वह अग्निकायिक जीव है। वैदिक सूक्तों में अग्नि को देवता के रूप में स्वीकार किया गया है। अग्नि त्रिकोण व लाल होती है। वट्टकेर स्वामी मूलाचार में कहते हैं कि धुआं रहित, अंगार, ज्वाला, दीपक की लौ, कंडा की आग, वज्राग्नि, बिजली आदि से उत्पन्न शुद्ध अग्नि, ये तैजसकायिक जीव हैं। इनमें जीवों को जानकर हिंसा का त्याग करें। (4) वायुकायिक जीव- वायु ही जिसका शरीर है वह वायुकायिक जीव है। वायु को भी वैदिक सूक्तों में देवता का स्थान दिया गया है। वट्टकेर स्वामी कहते हैं कि ऊँचा
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