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________________ 282 स्वर्ण जयन्ती गौरव-ग्रन्थ की गंदगी जल स्रोतों में नहीं जानी चाहिए तो प्रदूषण का एक बड़ा कारण समाप्त हो जाता है। जल प्रदूषण का एक अन्य कारण कृषि में रासायनिक खाद व कीटनाशकों का प्रयोग है। जैन दृष्टिकोण रासायनिक खाद व कीटनाशकों के प्रयोग का विरोध करता है। श्रावकाचार अहिंसा धर्म को प्राधान्य देता है जिसके कारण कीटनाशकों का प्रयोग स्वतः ही बंद करना आवश्यक हो जाता है। रासायनिक खाद का उपयोग उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है परन्तु जब उपभोग पर ही संयम लागू हो जाता है तो उत्पाद को अधिक बढ़ाने की आवश्यकता नहीं होती, साथ ही रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि उपलों- कण्डों से जैनाचारानुसार भोजन बनाना वर्जित है। इस प्रकार बचे गोबर का उपयोग खाद के रूप में हो सकता है। प्रदूषण का यह स्रोत भी समाप्त हो जाता है। भू-प्रदूषण निवारण- जैनागम मृदा को पृथ्वीकायिक जीव मानता है। इसका भी जन्म-मरण होता है। पृथ्वी पर जीव आश्रित होते हैं परन्तु पृथ्वी भी खुद एक जीव है। पृथ्वी प्राणों से युक्त एक औदारिक, कार्मण व तैजस शरीर से युक्त होती है।” पृथ्वी में प्राणियों की तरह दीनता, अनाथता, अशरणता आदि भी है, अतः पृथ्वी जीव है।" पृथ्वीकायिक द्वारा जो शरीर छोड़ा जाता है, वह पृथ्वीकाय है।" जो जीव पृथ्वीकायिक नामकर्म के उदय से पृथ्वी नामक शरीर को प्राप्त करते हैं वे पृथ्वीकायिक हैं। 18 मृदा प्रदूषण का कारण घरेलू, नगरपालिका, औद्योगिक अपशिष्ट, कीटनाशक व रसायनों का प्रयोग व भू-उत्खनन है। विविध अपशिष्टों को भोगोपभोग परिमाण व्रत द्वारा सीमित किया जा सकता है। मानव यदि अपनी आवश्यकताओं पर संयम रखे तो उसे उत्पादन की कम आवश्यकता होगी, स्वाभाविक रूप से जब कम उत्पादन होगा तो अवशिष्ट भी कम होंगे। खनन - उद्योग भी भू-प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण है। खनन कच्चे माल की प्राप्ति हेतु किया जाता है। जब आवश्यकता कम होगी तो उत्पादों की मांग कम होगी और परिणामस्वरूप कच्चे माल की मांग भी स्वतः कम हो जाएगी। मानवीय सोच में यह भी परिवर्तन लाना है कि पृथ्वीकाय भी जीव है ताकि संवेदना का स्तर उच्च हो और पृथ्वी को प्रदूषित करने वाली क्रियाओं को रोकने के प्रति उत्सुक हो सके। जैन दृष्टिकोण कीटनाशकों और रासायनिक खाद का विरोध करता है क्योंकि इनका प्रयोग उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है परन्तु जब हम उपभोग की कमी कर देंगे तो उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता ही नहीं होगी। रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद का प्रयोग प्रशस्त माना गया है। आधुनिक युग में जैविक खाद्यान्न की मांग तेजी से बढ़ी है जो बिना कीटनाशकों और जैविक खाद द्वारा तैयार किया जाता है। इस प्रकार आधुनिकता भी जैन सिद्धान्तों का समर्थन करती है। कीटनाशकों और रासायनिक खाद के प्रयोग से जमीन की उर्वरता नष्ट हो जाती है और वह जमीन बंजर हो जाती है, ऐसा आधुनिक वैज्ञानिक शोधों Jain Education International For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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