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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
क्षेत्र पर विद्यापीठ की स्थापना हो रही है, वह भी सरकार को स्थानीय जनता से दान के रूप में प्राप्त हुआ है। यहाँ की जनता के सहयोग का प्रत्यक्ष उदाहरण है। विद्यापीठ के लिए पचास एकड़ भूमि प्राप्त करने का निश्चय किया गया है, जिसमें से तेरह एकड़ मिल चुकी है। शेष शीघ्र प्राप्त हो जाने की आशा है। जब तक यहाँ आवश्यक भवन नहीं बन सकेंगे, तब तक विद्यापीठ का कार्य मुजफ्फरपुर में संचालित होगा।
यहाँ हमें यह प्रकट करते हुए हर्ष होता है कि इस विद्यापीठ के डायरेक्टर पद के लिए डाक्टर हीरालाल जैन की सेवाएँ प्राप्त हो गयी हैं। डाक्टर जैन इस विश्वविद्यालय के संस्कृत, पाली और प्राकृत विभाग के अध्यक्ष तथा उसकी विद्यापरिषद् के प्रधान (डीन ऑफ दी फैकल्टी ऑफ आर्टस्) थे। उन्हें उक्त विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ाने एवं अनुसन्धान-कार्य का संचालन करने का तीस वर्ष का अनुभव है। उनके संशोधित, संपादित लगभग 20-25 प्राकृत और जैन तत्त्व-ज्ञान विषयक ग्रन्थ तथा कोई 50 संशोधनात्मक लेख उनकी विद्वत्ता के परिचायक हैं। आशा है कि उनके संचालकत्व में विद्यापीठ अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफल होगा।
जिन कारणों से प्रभावित होकर इस विद्यापीठ की यहाँ स्थापना की गयी है और उसकी शिलान्यास-विधि के लिए आज का दिन नियत किया गया है, उसका भी कुछ परिचय देना असामयिक न होगा। बिहार सरकार ने अपने स्थापित विद्यापीठों के लिए चनने में ऐतिहासिक औचित्य की ओर भी ध्यान दिया है और इसी दृष्टि से मिथिला विद्यापीठ की स्थापना दरभंगा में तथा पाली बौद्ध विद्यापीठ की स्थापना नालन्दा में की है। प्राकृत जैन विद्यापीठ के लिए सरकार के सम्मुख दो स्थानों के सुझाव उपस्थिति थे-एक राजगृह के लिए और दूसरा वैशाली के लिए। वैशाली के संबंध में लोगों को पूर्ण जानकारी नहीं थी, किन्तु अब पुरातत्त्व और जैन ग्रन्थों से यह भलीभाँति सिद्ध हो गया है कि वर्तमान बसाढ़ और उसके आसपास की भूमि ही प्राचीन काल की सुप्रसिद्ध लिच्छवि राजधानी वैशाली है और उस विदेह स्थित कुंडपुर या कुंडग्राम को जैन शास्त्रों में भगवान् महावीर तीर्थङ्कर की जन्मभूमि तथा कुमार क्रीडाक्षेत्र माना गया है।
यही नहीं. बासोकंड ग्राम के भीतर लगभग दो एकड के एक ऐसे क्षेत्र का भी पता चला है जो स्थानीय जनश्रुति के अनुसार परम्परा से भगवान् महावीर का जन्म-स्थान मान कर कभी जोता-बोया नहीं गया, किन्तु जन साधारण द्वारा पूजा जाता है। इसलिए अब इसमें किसी को सन्देह नहीं रहा कि यथार्थतः यही स्थान इस विद्यापीठ की स्थापना के लिए सबसे अधिक उपयुक्त होगा। भगवान् महावीर को जैन ग्रन्थों में वैशालिक अर्थात् वैशाली के नागरिक कहा गया है। उनके प्रव्रजित होने के पश्चात् उनका प्रथम आहार कोल्लाग नामक सन्निवेश में हुआ था जो कोल्हुआ नाम से वासोकुंड से सटा हुआ ग्राम अब भी विद्यमान है। भगवान् के बारह वर्ष निवास वैशाली और वाणिज्य ग्राम में हुए थे। इस वाणिज्य ग्राम का वर्तमान प्रतिनिधि बनिया गाँव अब भी यहीं विद्यमान है। इस प्रकार भगवान् महावीर की सच्ची जन्मभूमि वासोकुण्ड ग्राम के पास विद्यापीठ की स्थापना उचित मानी गयी। उपर्युक्त दो एकड़ के स्थल को उनके स्वामी किसानों ने सरकार को
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