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संस्थान के शिलान्यास के अवसर पर बिहार के शिक्षा-मंत्री
आचार्य बदरीनाथ वर्मा का भाषण
आज बिहार राज्य और यहाँ की जनता की ओर से आपका (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का) स्वागत करता हूँ। के सांस्कृतिक विकास की ओर आपका कितना ध्यान है यह तो इसी से स्पष्ट है कि इस ग्रीष्मकाल और सुदूर ग्राम की अनेक असुविधाओं का विचार न करके भी आपने आज यहाँ श्री महावीर स्मारक और प्राकृत विद्यापीठ की स्थापना के लिए पधारने का कष्ट स्वीकार किया है।
स्वतन्त्र भारत के युगारम्भ में ही बिहार राज्य ने उच्चतम अध्यापन और अनुसन्धान कार्य के लिए जिन तीन विद्यापीठों की योजना तैयार की थी, उनमें से वैदिक और संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना दरभंगा में तथा पाली और बौद्ध धर्म विषयक अध्ययन के लिए नालन्दा विद्यापीठ की स्थापना नालन्दा में आज से कोई साढ़े चार वर्ष पूर्व आपके ही पण्यशाली हाथों द्वारा की गई थी। हमें यह सचित करते हर्ष होता है कि वे दोनों विद्यापीठ अपनी-अपनी योजना के अनुसार नियत उद्देश्यों की पूर्ति में लगे हुए हैं और उत्तरोत्तर उन्नति करते जा रहे हैं।
उसी योजना की तीसरी संस्था वैशाली प्राकृत विद्यापीठ की शिलान्यास-विधि आज यहाँ आपके वरदानी कर-कमलों द्वारा सम्पन्न होने जा रही है। हमें यह घोषित करते हुए हर्ष होता है कि बिहार राज्य के प्रमुख उद्योगपति और जैन समाज के गणमान्य अग्रणी श्री शान्तिप्रसाद जी ने अपने उदार दान के द्वारा इस विद्यापीठ की स्थापना में बिहार सरकार का हाथ बटाया है और उसके आरम्भिक आर्थिक बोझ को हलका कर दिया है। उन्होंने इस विद्यापीठ के हेतु पाँच लाख का दान भवन आदि के लिए तथा प्रति वर्ष पच्चीस हजार के हिसाब से पाँच वर्ष तक चालू खर्च के लिए, इस प्रकार सवा छः लाख रुपयों का दान वीकार किया है। सरकार ने उनके स्थायी दान से चार लाख तो विद्यापीठ के कार्यालय, पुस्तकालय, छात्रालय तथा निवास भवन आदि बनाने में, एक लाख रुपया पुस्तकालय के लिए आवश्यक ग्रन्थों, शोध-पत्रिकाओं आदि के संग्रह के लिए नियत कर दिया है। यह
और भी प्रसन्नता की बात है कि श्री शान्तिप्रसाद जी ने विद्यापीठ के लिए उक्त गवश्यक भवन अपने निजी साधनों द्वारा शीघ्र बनवा देने का वचन दिया है, जिससे आशा की जा सकती है कि यहाँ भवनादि बनने में और उसमें विद्यापीठ का कार्य प्रारम्भ होने में अब अधिक विलम्ब नहीं होगा। इसके लिए बिहार की जनता और सरकार श्री शान्तिप्रसाद जी, श्री हरखचन्द जी तथा उनके द्वारा समस्त जैन समाज का बड़ा उपकार मानती है। जिस
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