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________________ बिहार के शिक्षा मंत्री आचार्य बदरीनाथ वर्मा का भाषण 13 दान कर दिया है और वहाँ पर श्री महावीर स्मारक की स्थापना विद्यापीठ के शिलान्यास से पूर्व ही आपके करकमलों द्वारा हो गयी है। इसी प्रकार महावीर के जन्मोत्सव का यह दिवस इस पवित्र कार्य को सम्पन्न करने के लिए उपयुक्त समझा गया। अब मुझे केवल इस वैशाली प्राकृत विद्यापीठ के उद्देश्य के संबंध में कुछ निवेदन करना है। अभी तक जितना ध्यान संस्कृत तथा पाली भाषा और साहित्य की ओर दिया जा चुका है, उतना प्राकृत भाषा और साहित्य की ओर नहीं दिया जा सका, यद्यपि इस भाषा का महत्त्व किसी प्रकार कम नहीं है, क्योंकि प्राकृत भाषा के देशभेदानुसार नाना रूपों से ही वर्तमान हिन्दी, बँगला आदि भाषाओं का विकास हुआ माना जाता है। जैन साहित्य अपनी काव्य-कला तथा ज्ञान-विज्ञान के अतिरिक्त दर्शन, इतिहास एवं सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रचुर सामग्री के लिए भी विख्यात है, किन्तु उसका पूरा-पूरा विश्लेषण होकर उसके द्वारा भारतीय तत्त्वज्ञान का पोषण होना अभी शेष ही है। अहिंसा तत्त्व का महात्मा गाँधी जी ने जो वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में व्यावहारिक प्रयोग करके दिखलाया, उससे इस तत्त्व ने भारत की राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय नीति की आधारशिला बन जाने के साथ ही साथ समस्त चिन्तनशील संसार को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। इस अहिंसा तत्त्व का जितना विवरण हमें जैन साहित्य में मिलता है, उतना अन्यत्र नहीं। इस तत्त्व और तंत्र का संसारव्यापी दृष्टि से अनुसन्धान करना आवश्यक है। इन्हीं विषयों को दृष्टि में रखते हुए इस विद्यापीठ की स्थापना की जा रही है। इसका मुख्य कार्य अध्ययन और अनुसन्धान होगा, पर इस कार्य के लिए कार्य-कर्ताओं को तैयार करना आवश्यक है। इसलिए चुने हुए विद्यार्थियों को उपयुक्त शिक्षा देकर तैयार किया जायेगा। ये बिहार विश्वविद्यालय की परीक्षा दे सकेंगे। जो अनुसन्धान की विशेष शिक्षा लेंगे, वे पी-एच. डी. और डी. लिट् की उपाधियों की परीक्षा में सम्मिलित हो सकेंगे। अध्यापकों और विद्यार्थियों द्वारा किये गये अनुसन्धानों का प्रकाशन भी किया जायगा। विभिन्न विषयक अप्रकाशित ग्रन्थों को सम्पादित कर प्रकाशित करना विद्यापीठ का विशेष कार्य होगा। इन कार्यों में यथाशक्ति बाहर के विद्वानों से सम्पर्क रखने की भी व्यवस्था विद्यापीठ के योजना-आदेश में कर दी गयी है। प्राकृत विद्यापीठ की स्थापना में जो आपका वरदहस्त और आशीर्वचन प्राप्त हो रहा है, उसके प्रसाद से आशा की जा सकती है कि विद्यापीठ अपने उद्देश्यों की पूर्ति में सफलता प्राप्त करता हुआ उत्तरोत्तर उन्नति करेगा और देश की प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा की कड़ियों को जोड़ कर फिर उसके गौरव को संसार के समक्ष उपस्थित करने में सहायक सिद्ध होगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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