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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
आहार, भय, मैथुन व परिग्रह चारों संज्ञाएँ होती हैं, उनका जन्म होता है, उन्हें भय महसूस होता है, उनके प्रति हिंसा होती है, वे संश्लेषित होते हैं। वायु प्रदूषण निवारण- वायु प्रदूषण कारण दहन, औद्योगिक निर्माण, खनन, उद्योग और अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग है। श्रावकाचार संस्कृति इनके परिणाम पर नियंत्रण कर वायु प्रदूषण की रोकथाम में सहायक हो सकती है। वायु में पाये जाने वाले जीवों की रक्षा ही नहीं वरन् जब स्वयं वायुकायिक जीव की रक्षा ध्येय हो तो मानव की संवेदनशीलता स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है।
जैनधर्म का जीव और पुद्गल का भेद इसमें सहायता करता है। मानव अपने सभी प्रयास शरीर को सुख-आराम पहुंचाने के लिए करता है, परन्तु जब उसे यह ज्ञान हो जाता है कि यह शरीर पुद्गलों द्वारा निर्मित है तथा आत्मा अनन्त चतुष्ट्यधारी है तो शरीर के सुख-साधन विस्तार के प्रति उसका मोह घटता है। वह भोग-साधनों को घटाने में लग जाता है। इन भोग साधनों में कमी लाकर वह वायु प्रदूषण के कारकों में स्वतः कमी ला देता है।
मानव की संवेदना जाग्रत होगी यदि वह सभी जीवों को अपने समान समझेगा। जब उसकी समझ में आ जायेगा कि सभी जीवों का अस्तित्व सभी जीवों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। किसी एक जीव द्वारा अन्य जीवों पर अधिकार और नियंत्रण जमाने का प्रयास समस्त सृष्टि चक्र के लिए घातक हो सकता है। जब वह यह समझेगा कि परस्पर उपकार करना ही जीव का स्वभाव है (परस्परोपग्रहो जीवानाम्) तभी उसकी चेतना में अन्य स्थावर जीवों के नाशक यंत्रों के उपयोग के प्रति मोह घटेगा। जल प्रदूषण निवारण- जल में न केवल जीव रहते हैं, वरन् जल स्वयं एक जीव है। इस उच्च संवेदना का विकास केवल तभी हो सकता है जब यह ज्ञान हो कि प्रदूषण न केवल जीवों वरन् स्वयं जलकायिक जीव का नाशक है।
जैन धर्म में अहिंसाणवत में कहा है- "श्रावक के स्थूल हिंसा का त्याग, स्थूल असत्य का त्याग, स्थूल चोरी का त्याग, स्थूल अब्रह्मचर्य का त्याग व स्थूल परिग्रह का त्याग होता है। इनसे एक देश या आंशिक विरति ही पंचाणुव्रत है। स्थूल हिंसा से तात्पर्य उस हिंसा से है जिसे लोक में सर्वसाधारण भी हिंसा के नाम से पुकारते हैं। वह इन संकल्पों से त्रस जीवों की द्रव्य व भाव हिंसा नहीं करता और प्रयोजनवश की जाने वाली स्थावर हिंसा से भी डरता है। यथासंभव उनकी भी यत्ना (बचाने का यत्न) करता है।'
श्रावक को त्रस हिंसा का पूर्ण परित्याग और स्थावर हिंसा से बचने का प्रयास करने का निर्देश है। जल प्रदूषण जो त्रस और स्थावर हिंसा का कारक है, उसमें श्रावक कैसे शामिल हो सकता है? श्रावक द्वारा वे सभी प्रयास किये जाते हैं जो जल प्रदूषण को रोके और जल प्रदूषण के कारणों का मूलोच्छेद करे।
जैनागम द्वारा जल संबंधी आचरण के जो निर्देश दिए गए हैं वे स्पष्ट करते हैं कि जल प्रदूषण के प्रति जैन धर्म में कितनी चेतना है
"अहिंसा पालन के लिए पानी उसी समय छानकर काम लाना चाहिए। नहाना, कपड़ा धोना, प्रक्षालन आदि क्रियाएँ उसी समय छने पानी से करनी चाहिए बिना छने पानी
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