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पर्यावरण संतुलन और जैन सिद्धान्त
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2. जल प्रदूषण- जल के भौतिक, रासायनिक व जैविक संघटन में अवांछित बाह्य पदार्थों के मिलने से हानिकारक परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता है। कारण- जल प्रदूषण के प्राकृतिक और मानवीय कारण हैं। भू-क्षरण, खनिज पदार्थ, गैस, जीवांश पदार्थ, पशु-पक्षियों के मल-मूत्र, फूल-पत्तियों आदि प्राकृतिक कारणों से होने वाला प्रदूषण बहुत कम और धीमा होता है। प्रकृति में इसे सहन करने की क्षमता होती है और वह इसका संतुलन कर लेती है।
जल प्रदूषण मुख्यतः मानवीय गतिविधियों से होता है। इन गतिविधियों में औद्योगिक बहि:स्राव, घरेलू अपशिष्ट, वाहित मल, कृषि बहिःस्राव आदि शामिल हैं। चर्म उद्योग, उर्वरक, कागज, तेल-शोधन, रासायनिक उद्योग, छपाई, रंगाई आदि विभिन्न उद्योगों से निकलने वाला अवशिष्ट विषैला जल बिना उपचार किये ही नदियों, सागरों, तालाबों में डाल दिया जाता है। घरेलू गतिविधियों, नहाने-धोने, भोजन, साफ-सफाई आदि से निकलने वाला दूषित जल नालियों के द्वारा सतही जल और भूगर्भीय जल को प्रदूषित करता है। घरेलू शौचालयों का मल-मूत्र जल स्रोतों को दूषित करता है। नाले-नदियों में पशु-पक्षियों के मरने से भी जल प्रदूषण होता है। कृषि में प्रयुक्त रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक जल को प्रदूषित करते हैं। जल प्रदूषण का फल- प्रदूषित जल के उपभोग से मानव में हैजा, टाइफाईड, पेचिश, हेपिटाइटिस, पीलिया, अमीबीडीसेट्री एस्केरिस आदि बीमारियाँ हो जाती हैं। इसके अतिरिक्त दुषित जल के बाह्य प्रयोग से ही विभिन्न चर्मरोग हो जाते हैं, फ्लोराइड युक्त जल के प्रयोग से दाँतों को नुकसान पहुँचता है। प्रदूषित जल से जलीय जीव-जंतुओं का जीवनचक्र गहरे रूप से प्रभावित होता है। उनकी वृद्धि, प्रजनन, चयापचय आदि क्रियाएँ प्रभावित होती हैं, बहुत से जलीय जीव मर जाते हैं। थलचर और नभचर भी दूषित जल का प्रयोग करने से गंभीर बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, यहाँ तक कि मर भी जाते हैं। पादपों की वृद्धि के लिए दूषित जल हानिकारक होता है। जलीय वनस्पति दुषित जल से नष्ट हो जाती है। 3. मृदा प्रदूषण- भूमि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसका दुष्प्रभाव मनुष्य व अन्य जीवों पर पड़े या जिससे भूमि की प्राकृतिक गुणवत्ता व उपयोगिता नष्ट हो, भ-प्रदूषण कहलाता है। कारण- भू-प्रदूषण घरेलू, नगरपालिका, औद्योगिक अपशिष्टों, कीटनाशकों, रसायनों, भू-उत्खनन, मृदा-क्षरण आदि से होता है। घरेलू अपशिष्टों में कूड़ा-करकट, फल-सब्जी के शेष पदार्थ, लोहे प्लास्टिक के डिब्बे-डिब्बियाँ, बोतलें, पैंकिंग बॉक्स, काँच या चीनी के टूटे बर्तन, प्लास्टिक की थैलियां, रबड़ के बने उपकरण आदि शामिल हैं। नगरपालिका अपशिष्ट में बाजार, सब्जी-मण्डी, अस्पताल, नालियों, वधशालाओं, गटरों, पशु-शालाओं का कचरा शामिल है। उद्योगों में प्रयुक्त कच्चा माल अधजला कार्बन, विविध रसायन, बचे हुए हानिकारक पदार्थ आदि भू-प्रदूषण के कारण हैं। कृषि क्रिया में प्रयुक्त कीटनाशक और रसायन भू-प्रदूषण के महत्वपूर्ण कारक हैं। भू-प्रदूषण का अन्य कारण खनन क्रिया
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