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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
पर्यावरण में सभी तत्वों का एक निश्चित अनुपात है जिससे पर्यावरण सुचारु रूप से कार्य करता है, वह निश्चित अनुपात ही पर्यावरण संतुलन है।
पर्यावरण में प्रकृति प्रदत्त एक विशेष क्षमता है कि विभिन्न तत्वों के अनुपात में जो थोड़ी बहुत कमी-बढ़ोत्तरी होती है उसे वह स्वयं संतुलित कर लेता है जिससे पर्यावरण संतलन बना रहता है, परन्तु जब यह अनुपात एक सीमा से अधिक बिगड़ जाता है तो विकास उत्पन्न होता है। यहीं से पर्यावरण असंतुलन उत्पन्न होता है।
पर्यावरण में ऐसे तत्वों का बढ़ना जिनसे जैन-अजैव घटकों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और उनका संतुलन दुष्प्रभावित होता है, पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।
पर्यावरण प्रदूषण आधुनिक युग की विकरालतम समस्याओं में से एक है। दुनिया भर के वैज्ञानिक बुद्धिजीवी, विद्वान, विचारक, दार्शनिक, पत्रकार, समाजसेवी, राजनेता इस समस्या के प्रति मानव समुदाय का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, टी. वी., रेडियो, गोष्ठियों, सभाओं, रैलियों, प्रदर्शनों में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को आज प्रमुखता दी जा रही है। पर्यावरण प्रदूषण ने मानव अस्तित्व को संकट में डाल दिया है। इसलिए यह समस्या हमारे गहन विचार और अन्वेषण का विषय है। पर्यावरण प्रदूषण को निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है
____ 1. वायु प्रदूषण, 2. जल प्रदूषण, 3. मृदा प्रदूषण, 4. ध्वनि प्रदूषण। 1. वायु प्रदूषण- "वायु के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों में ऐसा कोई अवांछित परिवर्तन जिसके द्वारा स्वयं मनुष्य का जीवन या अन्य जीवों की जीवन परिस्थितियों, हमारे औद्योगिक प्रक्रमों तथा हमारी सांस्कृतिक सम्पत्ति को हानि पहुंचे या हमारी प्राकृतिक सम्पदा नष्ट हो या उसे हानि पहुंचे, वायु प्रदूषण कहलाता है।'' कारण- वायु प्रदूषण प्राकृतिक और मानवकृत कारणों से होता है। प्रकृति में ज्वालामुखी, आंधी, तूफान, दावानल, कोहरा, मार्श गैस आदि के द्वारा प्रदूषण होता है जिसके उपचार में प्रकृति स्वयं समर्थ है। वायु प्रदूषण का महत्वपूर्ण कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं। मानव की भोगवृत्ति ने उसे भौतिक संसाधन बढ़ाने को मजबूर किया है। घरेलू कार्यों, औद्योगिक प्रक्रमों, वाहनों, खनन, शस्त्र निर्माण-प्रयोग आदि वायु प्रदूषण के मुख्य कारण हैं। इन विविध कार्यों से कार्बन-डाई-ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, नाइट्रो आक्साइड, धूलकण, सूक्ष्म कार्बन कण, सीसा, नाभिकीय अवपात होता है। वाय प्रदूषण का मानव, सूक्ष्मजीवों, जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों, कीट-पतंगों पर गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है। वायु प्रदूषण का फल- वायु प्रदूषण के कारण मानव में ब्रोंकाइटिस, दमा, फेफड़े का कैंसर, आँख दुखना, सिर चकराना, जुकाम-खाँसी आदि विभिन्न रोग हो जाते हैं। वायु प्रदूषण का जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य पर भी गहरा दुष्प्रभाव पड़ता है, कुछ जीव तो मर ही जाते हैं। पेड़-पौधों में पत्तियों का पीला पड़ना फूलों का कुम्हलाना, मुरझाना आदि वायु प्रदूषण के कारण होता है।
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