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पर्यावरण संतुलन और जैन सिद्धान्त
डॉ. पी.सी. जैन*
पर्यावरण शब्द का अर्थ है परितः आवृयते अर्थात् जो हमें चारों ओर से धारण किये हुए हैं। मानव के चारों ओर जो प्रकृति का आवरण है, वह आवरण कहलाता है। मानव को चारों ओर से घेरने वाला आवरण जिसमें जीव और अजीव सभी सम्मिलित हैं वह पर्यावरण है। पर्यावरण ऐसा घेरा है जिसमें हम हैं और जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण वह आवरण है जो मनुष्य को शामिल करते हुए बाह्य भौतिक-जैविक परिस्थितियों से जुड़ा है। वेबस्टर शब्दकोश के अनसार "पर्यावरण से आशय उन परिव्याप्त र परिस्थितियों, प्रभावों एवं शक्तियों से है, जो सामाजिक व सांस्कृतिक दशाओं के समूह द्वारा व्यक्ति व समुदाय के जीवन को प्रभावित करती है।"
प्रसिद्ध मानवशास्त्री हरस्कोविट्ज के अनुसार "पर्यावरण संपूर्ण बाह्य परिस्थितियों और उनका जीवधारियों पर पड़ने वाला प्रभाव है, जो जैन जगत के जीवन-चक्र का नियामक है।'
मैकमिलन शब्दकोश के अनुसार "The natural world, including the land, water, air, plants and animals, especially considered as something that is affected by human activity"
प्रो. साविन्द्र सिंह के अनुसार "पर्यावरण एक अभिमान्य समष्टि है तथा भौतिक, जैविक, सांस्कृतिक तत्वों वाले पारस्परिक क्रियाशील तंत्रों से इसकी रचना होती है। ये तंत्र अलग-अलग तथा सामूहिक रूप से विभिन्न रूपों में आपस में सम्बद्ध होते हैं। भौतिक तत्व (स्थल, जलीय भाग, जलवायु, मृदा, शैल, खनिज) मानव निवास क्षेत्र की परिवर्तनशील विशेषताएँ उस तंत्र के सुअवसरों और प्रतिबंधक अनास्थितियों को निश्चित करते हैं। सांस्कृतिक तत्व (आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक) मुख्य रूप से मानव निर्मित होते हैं तथा सांस्कृतिक पर्यावरण की रचना करते हैं।
पर्यावरण का निर्माण मानव और उसको घेरे हुए भौतिक एवं अभौतिक तत्वों के संयोजन से होता है। पर्यावरण में मानव, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, कीट-पतंगे, वायरस, जीवाणु, मिट्टी, हवा, पानी, खनिज आदि सभी जैव और अजैव तत्व सम्मिलित हैं।
* निदेशक, जैन अनुशीलन केन्द्र, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर।
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