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________________ अहिंसा की परिधि में पर्यावरण सन्तुलन 273 है। संधिवात, साइटिका, लकवा, मिर्गी, सुजाक, पायरिया, क्षय, कैंसर, ब्लडप्रेशर आदि जैसे रोगों का मुख्य कारण कब्ज है और गलत आहार-विहार तथा श्रम का अभाव है। शुद्ध शाकाहार प्राकृतिक आहार है और संयमित-नियमित भोजन रोगों के निदान, उत्तर स्वास्थ्य और मन की खुशहाली का मूल कारण है। मांसाहार एक ओर जहां मानसिक क्रियाओं को असंतुलित करता है वहीं वह शरीर को भी बुरी तरह प्रभावित करता है। इसीलिए धर्माचार्यों ने अहिंसा की परिधि में शाकाहार पर बहुत जोर दिया है और उन पदार्थों के सेवन का निषेध किया है जो किसी भी दृष्टि से हिंसाजन्य है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा अहिंसात्मक साधना के लिए सर्वाधिक अनुकल पैथी है। बारह व्रतों का परिपालन, त्रिगुप्तिओं से विषय-वासनाओं का संयमन और पंच समितियों से व्यावहारिक हिंसा से बचने के उपायों का निदर्शन पर्यावरण की सुरक्षा तथा व्यक्ति के आध्यात्मिक संकल्प की पूर्ति का सक्षम उदाहरण हैं। जैन श्रावकाचार के अनुसार न्यायपूर्वक अर्जन, माता-पितादि की सेवा, धर्मश्रवण, जितेन्द्रियता आदि गुण श्रावक में होना चाहिए। पाक्षिक श्रावक आठ मूल गुणों का पालन करता है- पञ्चाणुव्रत तथा मद्य, मांस, मधु त्याग, इन अष्ट मूलगुणों का पालन करता है। देवपूजा, गुरुभक्ति, स्वाध्याय, संयम, तप और दान करने वाला सभी व्यसनों से निर्मुक्त होता है। इसी सन्दर्भ में जैन साहित्य में अहिंसा और सदाचार का काफी विस्तार से वर्णन मिलता है। यज्ञ, बलि आदि जैसी कर्मकाण्डीय क्रियाओं और त्रिमूढ़ताओं से दूर रहने का भी आह्वान किया गया है। इसी तरह नैष्ठिक श्रावक ग्यारह प्रतिमाओं का पालन कर आध्यात्मिक वातावरण का निर्माण करता है और नैतिक प्रदूषण से बचता/बचाता है। एक दिन ऐसा आयेगा जब मनुष्य को स्वास्थ्य के सबसे बुरे शत्रु के रूप में निर्दयी 'शोर' से संघर्ष करना पड़ेगा। यह ध्वनि प्रदूषण उद्योग-धन्धों, मशीनों, परिवहन और मनोरंजन के साधनों द्वारा उत्पन्न हो रहा है जिसे संयमित किया जा सकता है परिमाण व्रत का पालन करने से। पर्यावरण का यह विकट आन्तरिक और बाह्य असन्तुलन धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में जबर्दस्त क्रान्ति लायेगा। यह क्रान्ति अहिंसक हो तो निश्चित ही उपादेय होगी पर यह असन्तुलन और बढ़ता गया तो खूनी क्रान्ति होना भी असंभव नहीं है। जहाँ एक दूसरे समाज के बीच लम्बी-चौड़ी खाई हो गयी हो, एक तरफ प्रासाद और दूसरी तरफ झोपडियाँ हो. एक ओर कपच और दसरी ओर भख से मत्य हो तो ऐसा समाज बिना वर्ग संघर्ष के कहाँ रह सकता है? सामाजिक समता की प्रस्थापना और वर्ग संघर्ष की व्यथा-कथा को दूर करने के लिए अहिंसक समाज की रचना और पर्यावरण की विशुद्धि एक अपरिहार्य साधन है। उपर्युक्त पर्यावरण प्रदूषण के भयानक दुष्परिणामों से बचने के लिए यह अब आवश्यक है कि हम प्रदूषण-स्रोतों को नियंत्रित करें, वनीकरण और वृक्षारोपण संबंधी चिपको आंदोलन जैसे कल्याणकारी कदमों को स्वीकार करें। औद्योगिक विकास को रोके बिना प्रदूषित पदार्थों को कुशलतापूर्वक निस्तारित करने की योजना बनायें, रासायनिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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