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________________ अहिंसा की परिधि में पर्यावरण सन्तुलन प्रो. (डॉ.) पुष्पलता जैन* अहिंसा धर्म है, संयम है और पर्यावरण निसर्ग है, प्रकृति है। प्रकृति की सुरक्षा हमारी गहन अहिंसा और समय साधना का परिचायक है। प्रकृति का प्रदूषण पर्यावरण के असन्तुलन का आवाहक है और असन्तुलन अव्यवस्था और भूचाल का प्रतीक है अतः प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखना हमारा धर्म है, कर्त्तव्य है और आवश्यकता भी । अन्यथा विनाश के कगारों पर हमारा जीवन बैठ जाता है और कटी हुई पतंग-सा लड़खड़ाने लगता है। यह ऐतिहासिक और वैज्ञानिक सत्य है। जिसे आज हम भोग रहे हैं। हमारे यहां प्रारंभ में पर्यावरण संरक्षण की समस्या नहीं थी। चारों दिशाओं में हरे-भरे खेत, घने जंगल कल-कल करती नदियां, जड़ी-बूटियों से भरे पर्वत आदि सभी कुछ प्राकृतिक सुषमा का बखान करते थे। हमारा प्राचीन साहित्य इसी प्रकृति की सुरम्य छटा के वर्णन से आपूर है। उसमें व्यक्ति की भद्र प्रकृति और उसकी पापभीरुता का भी दिग्दर्शन होता है। वनस्पति जगत का जो सम्मान यहां किया गया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। अवतारों और जैन तीर्थंकरों के चिन्ह पशु-पक्षियों में से ग्रहण किये गये हैं। प्राचीन मूर्तिकला, स्थापत्यकला तथा मुद्राओं पर अशोक, कदम्ब, पीपल आदि वृक्षों के चित्र भी इसी के प्रमाण हैं। वसंत ऋतु में रंग-बिरंगे मनमोहक पुष्प, ग्रीष्म ऋतु का तपता हुआ वायुमंडल, वर्षाऋतु की लहलहाती धरती और शीत ऋतु की सुहावनी रातें भला कौन भूल सकता है? प्राचीन ऋषियों-महर्षियों और आचार्यों ने इस प्राकृतिक तत्व को न केवल भली-भांति समझ लिया था बल्कि उसे उन्होंने जीवन में उतारा भी था। वे प्रकृति के रम्य प्रांगण में स्वयं रहते थे, उसका आनंद लेते थे और वनवासी रहकर स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए प्रकृति की सुरक्षा किया करते थे। वैदिक ऋषि महर्षि, महावीर और बुद्ध जैसे महापुरुषों के जीवन की अनेक घटनाएं प्रकृति की छत्र-छाया में घटित हुई हैं। कालांतर में उन वृक्षों की पूजा का विधान रच कर उनकी सुरक्षा का प्रबंध धर्म मान लिया गया। पीपल (बोधिवृक्ष) ज्ञान-प्रकाशक है, ग्राम गोष्ठी और व्याकुल पथिक के लिए आश्रयदाता है । वटवृक्ष भी ज्ञान और समृद्धि का प्रतीक है। अशोक वृक्ष ने सीताजी को आश्रय दिया था, इस बात को हम सभी जानते हैं। वृक्षों की उपयोगिता के कारण वे अनेक जनश्रुतियों * पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, एस. एफ. एस. कॉलेज, तुकाराम चाल, सदर, नागपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only - 440 001. www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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