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________________ 252 स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ प्रियब मुद्राओं का उल्लेख है, तो वहीं ज्ञानार्णवतंत्र (4/31-47) में तीस से अधिक मुद्राओं का निर्देश दिया गया है। विष्णुसंहिता (7) के अनुसार तो मुद्राएँ अनगिनत हैं। देवीपुराण (11/16/68-102), ब्रह्मपुराण (61/55), नारदीयपुराण (2157/55, 56) आदि अनेक हिन्दू पुराणों और तांत्रिक ग्रन्थों में मुद्राओं के उल्लेख मिलते हैं। बौद्ध परम्परा में भी मंजू श्री कल्प (380) में 108 मुद्राओं के नाम दिये गये हैं। जैन परम्परा में अभिधानराजेन्द्रकोश में योगमुद्रा, जिनमुद्रा और मुक्तासुक्तिमुद्रा का तथा जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश में योगमुद्रा, नमद्रा, वंदनामद्रा और मुक्तासक्तिमद्रा-ऐसी चार मुद्राओं का उल्लेख मिलता है- 1. दोनों भुजाओं को लटकाकर और दोनों पैरों में चार अंगुल का अन्तर रखकर कायोत्सर्ग में खड़े रहने का नाम जिनमुद्रा है। 2. पल्यंकासन, पर्यंकासन और वीरासन इन तीनों में से किसी भी आसन में बैठकर, नाभि के नीचे, ऊपर की तरफ हथेली करके दोनों हाथों को ऊपर नीचे रखने से योग मुद्रा होती है। 3. खड़े होकर दोनों कुहनियों को पेट के ऊपर रखने और दोनों हाथों को मुकुलित कमल के आकार में बनाने पर वन्दनामुद्रा होती है। 4. वन्दनामुद्रा के समान ही खड़े होकर, दोनों कुहनियों को पेट के ऊपर रखकर, दोनों हाथों की अंगुलियों को आकार विशेष के द्वारा आपस में संलग्न करके मुकुलित बनाने से मुक्तासुक्तिमुद्रा होती है। प्रियबलशाह ने जर्नल ऑफ इन्स्टीच्यट ऑव बडौदा के खण्ड-6. संख्या-1. पृष्ठ 135 में मुद्राओं से संबंधित दो जैन ग्रन्थों का उल्लेख किया है- 1. मुद्रा विचार और 2. मुद्रा विधि। उनका कथन है कि मुद्रा विचार में 73 मुद्राओं का और मुद्राविधि में 114 मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। अभी ये दोनों ग्रन्थ मुझे देखने को नहीं मिले हैं। उपलब्ध एवं प्रकाशित जैन ग्रन्थों में लघुविद्यानुवाद में 45 मुद्राओं को परिभाषित किया गया है और कुछ मुद्राओं के चित्र भी दिये गये हैं। भैरवपद्मावतीकल्प के अंत में भी कुछ मुद्राओं के चित्र हैं, किन्तु ये मुद्राएँ वहीं हैं जो लघुविद्यानुवाद में उल्लिखित हैं। मुद्राओं के संदर्भ में एक विस्तृत विवरण विधिमार्गप्रपा के मुद्राविधि नामक 37वीं विधि में मिलता है। इसमें आह्वान संबंधी नौ मुद्राओं, पूजा संबंधी चार मुद्राओं, षोडश विद्या संबंधी सोलह मुद्राओं, दिक्पाल संबंधी चार मुद्राओं, देवदर्शन संबंधी तीन मुद्राओं, प्रतिष्ठा विधि संबंधी अट्ठाइस मुद्राओं के उल्लेख उपलब्ध हैं। विधिमार्गप्रपा में जिन मुद्राओं का उल्लेख है उनके नाम इस प्रकार हैं- 1. नाराच मुद्रा 2. कुम्भ मुद्रा 3. हृदय मुद्रा 4. शिरो मुद्रा 5. शिखर मुद्रा 6. कवच मुद्रा 7. क्षुर मुद्रा 8. अस्त्र मुद्रा 9. महा मुद्रा 10. धेनु मुद्रा 11. आवाहनीय मुद्रा 12. स्थापनी मुद्रा 13. सन्निधानी मुद्रा 14. निष्ठुरा मुद्रा या विसर्जन मुद्रा 15. पाणियुग आवाहनीय मुद्रा 16. पाणियुग स्थापन मुद्रा 17. निरोध मुद्रा 18. अवगुण्ठन मुद्रा 19. गोवृष मुद्रा 20. त्रसनी मुद्रा 21. पूजा मुद्रा 22. पाश मुद्रा 23. अंकुश मुद्रा 24. ध्वज मुद्रा 25. वरद मुद्रा 26. शंख मुद्रा 27. शक्ति मुद्रा 28. श्रृंखला मुद्रा 29. वज्र मुद्रा 30. चक्र मुद्रा 31. पद्म मुद्रा 32. गदा मुद्रा 33. घण्टा मुद्रा 34. कमण्डल मुद्रा 35. परशु मुद्रा (द्वय), 36. वृक्ष मुद्रा 37. सर्प मुद्रा 38. खड्ग मुद्रा 39. ज्वलन मुद्रा 40. श्रीमणि मुद्रा 41. दण्ड मुद्रा 42. पाश मुद्रा 43. शूल मुद्रा 44. संहार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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