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________________ श्रमणाचार विषयक ग्रन्थों में मुनि-आर्यिकाओं की वन्दना-विधि 211 8. वही, गाथा 7/83. 9. विणयेण विप्पहीणस्स हवदि सिक्खा णिरत्थिया सव्वा। विणओ सिक्खाए फलं विणयफलं सव्व कल्लाणं।। - वही, 5/188. 10. वही, गाथा 5/188 की संस्कृत आचारवृत्ति। 11. वही, गाथा 5/189. 12. अरहंतसिद्धपडिमातव सुदगुण गुरुगुरूणरादीणं। किदियम्येणिदरेण य तियरणसंकोचणं पणमो।। - वही, गाथा 1/25. 13. धर्मामृत (अनगार) 8/46 का विशेषार्थ। 14. मूलाचार, गाथा 7/76. 15. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 103. 16. वही, पृ. 104-109. 17. मूलाचार, गाथा 7/102-106, धर्मामृत (अनगार) 8/98-111. 18. नामोच्चारणमर्चाङ्गकल्याणावन्यनेहसाम्। गुणस्य च स्तवाश्चैकगुरोर्नामादिवन्दना।। - धर्मामृत (अनगार), 8/49. 19. धर्मामृत (अनगार), 8/50. 20. वही, 8/51. 21. वही, 8/52. 22. वही, 8/53. 23. वही, 8/54. 24. वही, 8/55. 25. स्थितस्याध्युदरं न्यस्य कर्पूरौ मुकुलीकृतौ। करौ स्याद् वन्दनामुद्रा मुक्ताशुक्तियुताङ्गुली।। -वही 8/86. 26. वही, 8/87. 27. भगवती आराधना, गाथा 423 की विजयोदया टीका, पृ. 331. 28. धर्मामृत (अनगार), 9/31. 29. वही, 9/33. 30. नमोऽस्त्विति नतिः शास्ता समस्तमतसम्मता। कर्मक्षयः समाधिस्तेऽस्त्वित्यार्यजने नते।। धर्मबुद्धिः शुभं शान्तिरस्त्वित्याशीरगारिणी। पापक्षयोऽस्त्विति प्राज्ञैश्चाण्डालादिषु दीयताम्।। - आचारसार 66-67, पृ. 37-38 (द्रष्टव्य- मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 319) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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