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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
'वन्दामि' करते हैं। ब्रह्मचारीगण या श्रावक भी मुनियों को 'नमोऽस्तु' आर्यिकाओं को 'वन्दामि' करते हैं। ये मुनि-आर्यिका भी व्रतियों को 'समाधिरस्तु' अथवा 'कर्मक्षयोऽस्तु' ऐसा आशीर्वाद देते हैं। अव्रती श्रावक-श्राविकाओं को 'सद्धर्मवृद्धिरस्तु' 'शुभमस्तु' या 'शान्तिरस्त' ऐसा आशीर्वाद देते हैं। अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा वन्दित होने पर उन्हें 'धर्मलाभोऽस्तु' और निम्न जाति के लोगों द्वारा वन्दना किये जाने पर 'पापक्षयोऽस्तु' ऐसा कहकर आशीर्वाद देते हैं।
इस प्रकार मोक्षमार्ग में संलग्न संयमीजनों के लिये अपने से बड़ों, छोटों अथवा अन्य सामान्यजनों के लिये किस प्रकार वन्दना करने, नमस्कार करने अथवा आशीर्वाद देने आदि का विधान श्रमणाचार विषयक ग्रन्थों में किया गया है, इसका संक्षिप्त विवेचन मैंने यहाँ प्रस्तुत किया है। सभी भव्य प्राणियों को अपनी-अपनी भूमिका के अनुकूल व्यवहार कर मोक्षमार्ग में प्रवृत्त होना चाहिए।
संदर्भ ग्रन्थ 1. तत्वार्थसूत्र (गृद्धपिच्छ आचार्य), विवेचनकर्ता- पं. फूलचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री, प्रका.-श्री
गणशे वर्णी जैन ग्रन्थमाला, भदैनीघाट, बनारस, प्रथम संस्करण, वी. नि. सं. 2406. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (क्षु. जिनेन्द्र वर्णी), भाग-3, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, प्रथम संस्करण, सन् 1972. भगवती आराधना (आचार्य श्री शिवार्य), सम्पा. एवं अनु.- पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, तृतीयावृत्ति, वी. नि. सं. 2532. मूलाचार (आचार्य वट्टकेर), संस्कृत आचारवृत्ति एवं भाषा वचनिका सहित सम्पा.- डॉ.
फूलचन्द्र जैन प्रेमी आदि, भा. अनेकान्त विद्वत् परिषद्, प्र. सं., 1996. 5. धर्मामृत (अनगार), पण्डित प्रवर आशाधर, सम्पा.- अनु.-पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय
ज्ञानपीठ प्रकाशन, प्र. सं. 1977. मूलाचार का समीक्षात्मक अध्ययन, डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी, प्रका.-पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी-5, प्रथम संस्करण, 1987.
पाद टिप्पणी 1. तत्वार्थसूत्र 6/24. 2. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-3, पृ.-559.
तत्वार्थसूत्र 9/6. वही, 9/20. विणओ पुण पंचविहो णिद्दिट्ठो णाणदंसणचरिते।
तवविणवो य चउत्थो चरियो उवयारिओ विणओ।। -भगवती आराधना, गाथा-111. 6. मूलाचार, गाथा 7/79. 7. वही, गाथा 7/80-82.
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