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________________ क्षमा की शक्ति 195 11. क्षमा करने से पीड़ित व्यक्ति को अपराधी व्यक्ति की तुलना में अधिक लाभ होता है। दोषी को क्षमाकर हम स्वयं को ही राहत पहुंचाते हैं। क्षमा की औषधि गहराई में जाकर हमारी चोट और घाव का उपचार करती है। हमारे हृदय में प्रेम और सौहार्द को उत्पन्न करती है, बढ़ाती है। क्षमा करने से हमारा जीवन स्वस्थ और लंबा हो जाता है। हम क्षमाकर बड़ी राहत प्राप्त करते हैं। दूसरी ओर दोषी व्यक्ति को क्षमा करने से उसके जीवन में नई किरण खिल जाती है। हमें क्षमा करने की प्रवृत्ति अपने पिताजी से विरासत में मिली है। जन्म से मिली है। मैंने क्षमा के गुण और क्षमा की क्षमता को प्रभावी ढंग से सतत विस्तार दिया है। उसे नए आयाम दिए हैं। अपने व्यावहारिक जीवन में क्षमा का प्रयोग कर अनेक शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक एवं आर्थिक लाभ प्राप्त किए हैं। संतोषजनक अनुभव प्राप्त किए हैं। चतुर्मुखी विकास के पथ पर कुछ पग आगे बढ़ाये हैं। 12. यह सही है कि क्षमा करना प्रायः सरल नहीं होता है। वीर और अतिवीर व्यक्ति ही पूर्णतः क्षमा कर पाता है। क्षमा करने के लिए निजी साहस की आवश्यकता होती है। इसीलिए क्षमा को परम बल के रूप में स्वीकार किया गया है। समर्थ व्यक्तियों के आभूषण के रूप में स्वीकार किया गया है। क्षमा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करना आवश्यक होता है। क्षमा करने की शक्ति प्राप्त करने के लिए उपवास और आंशिक उपवास करना आवश्यक होता है। गहरी और गंभीर चोट को भरने के लिए धैर्यपूर्वक सतत प्रार्थना करना आवश्यक होता है। इसके लिए ईश्वर से शक्ति प्राप्त करना आवश्यक होता है। 13. यदि हम क्षमा नहीं करते हैं। आवेश में रहते हैं। बदला लेने की योजनायें बनाते रहते हैं। बदले की भावना को पैनी और तेज करते रहते हैं। इसके परिणाम स्वरूप हमारी हृदयगति बढ़ जाती है। हमारे ब्लडप्रेशर में वृद्धि हो जाती है। हमारे हाथ और पैर फूल जाते हैं। लड़खड़ाने लगते हैं। हम उदास और चिंतित हो जाते हैं। समुचित नींद नहीं ले पाते हैं। क्षमा का प्रवृत्ति की प्रवृत्ति दब्बूपन, विवशता, कमजोरी, मूर्खता या अतिकरुणा की सूचक नहीं है। हम यह सामान्य भ्रम न पालें कि क्षमा हमें कमजोर बनाती है। यह भ्रम सही नहीं है। हम अपने शत्रु से भी शत्रुता न रखें। उससे घृणा न करें। उसके प्रति सहानुभूति रखें। उसे क्षमा करने का प्रयास करें। क्षमा करने और क्षमा मांगने में झिझकें नहीं। यद्यपि अपने शत्रु के प्रति घृणा के स्थान पर सहानुभूति रखना अधिक कठिन है तदपि हमारे स्वयं के व्यक्तित्व विकास के लिए यह आवश्यक है। 15. दोषी व्यक्ति को भुला देना क्षमा नहीं है। उसके साथ अपने संबंध समाप्त करना क्षमा नहीं है। उसके साथ दूरी रखना क्षमा नहीं है। दोषी व्यक्ति से आगे के लिए संबंध तोड़ लेना क्षमा नहीं है। क्षमा आंतरिक प्रक्रिया होती है। क्षमा पीड़ित व्यक्ति द्वारा दोषी व्यक्ति को प्रदत्त महत्वपूर्ण भेंट होती है। यह भेंट देकर क्षमाकर्ता संतोष प्राप्त करता है। क्षमा करने के पूर्व पीड़ित व्यक्ति दोषी व्यक्ति की चोट से पहुँचे कष्ट को अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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