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________________ क्षमा की शक्ति 193 प्रसन्नता, शांति और मुक्ति का अनुभव करें। हम सदैव संस्कृत के निम्नांकित श्लोक का पठन, पाठन, चिंतन और मनन करें: सत्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। मध्यस्थ-भावं विपरीत-वृत्तौ सदा ममात्मा विदधातु देव।। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित कक्षा-7 की भाषा भारती की निम्नांकित हिन्दी कविता की पंक्तियों को गनगनाएँ: मैत्री भाव में जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे। दीन-दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा-स्रोत बहे।। दुर्जन-क्रूर-कुमार्गरतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आए। साम्यभाव रक्खू मैं उन पर, ऐसी परिणिति हो जाए। गणीजनों को देख हृदय में, मेरे प्रेम उमड़ आए। बने जहाँ तक उनकी सेवा, करके यह मन सुख पाए।। होऊँ नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आए। गुण ग्रहण का भाव रहे नित, दुष्टि न दोषों पर जाए।। फैले प्रेम परस्पर जग में, औरों का उपकार करें। अप्रिय कटुक कठोर शब्द नहीं, कोई मुख से कहा करें।। 5. क्षमा के भाव हमें विकास के पथ पर सदैव आगे बढ़ाते हैं। ऊँचा उठाते हैं। हम क्षमा करने से आर्थिक रूप से लाभान्वित होते हैं। शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ रहते हैं। अपना कार्य कुशलता पूर्वक करते हैं। जीवन में सदैव प्रगति करते हैं। अपनी भूल स्वीकार करने से भी यही लाभ प्राप्त होते हैं। हम ठेस पहुंचाने वाले व्यक्ति के साथ मित्रता का भाव रखें। ठेस पहुंचाने की घटना को यथाशीघ्र भुला दें। ठेस पहुँचाने वाले को क्षमा कर दें। ठेस पहुँचाने की घटना के बोझ को कभी न ढोएं, कल हुई घटना को कल पर ही छोड़ दें। ऐसी घटना को यथाशीघ्र विस्मृत कर दें। उसको कभी स्मरण नहीं करें। उसकी कभी चर्चा न करें। उसका कभी स्मरण न करें। ऐसी नकारात्मक घटना के स्मरण से हमको ही क्षति पहुँचती है। क्षमा की सखी मैत्री के भावों के विकास के लिए अपनी विचारधारा को हम विशाल एवं संवेदनशील बनायें। प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सद्भाव रखें। प्रत्येक व्यक्ति के साथ सद्व्यवहार करें। अपनी चेतना को उदार और व्यापक बनायें। अपनी चेतना को क्षुद्रता और संकीर्णता से बचायें। मैत्री केवल हमारे ऊपर ही निर्भर होती है। मैत्री किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर नहीं होती है। मैत्री से हमारे मन में उल्लास और उत्साह का संचार होता है। अपने मित्र को देखते ही हमारे चेहरे पर मुस्कान खिल जाती है। हमारी आंखें चमकने लगती है। हमारा हाथ प्रसन्नता से मित्र के हाथ से मिलने के लिए आगे बढ़ जाता है। मैत्री भाव से हमारे मन की ग्रन्थियाँ खुल जाती हैं। हमारे व्यक्तित्व से दुराव, छिपाव, तनाव और अवसाद जैसे दुर्गण दूर हो जाते हैं। हमारा व्यक्तित्व सहज, सरल, सरस और भारमुक्त हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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