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संदर्भ
1.
इससे स्पष्ट है कि क्रिया और परिणाम में बड़ा अन्तर है। पर्याय इस परिणाम का ही नाम है।
2.
3.
4.
जैन दर्शन में पर्याय का स्वरूप
देखिए आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित ' आप्तमीमांसा' के तृतीय परिच्छेद की कारिका 37 से 60 जिनमें इस विषय को अनेक तर्कों द्वारा स्पष्ट किया गया है।
तत्वार्थसूत्र 5/30.
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ. 1/357. 'घटमौलिसुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयं । शोकप्रमोदमाध्यस्थं जनो याति सहेतुकम् ॥ पयोव्रतो न दध्यत्ति न पयोत्ति दधिव्रतः ।
अगोरसव्रतो नोभे तस्मात्तत्त्वं त्रयात्मकं ।। " - आप्तमीमांसा, कारिका 59-60.
तत्वार्थवार्तिकम् 1/33/1.
6.
5.
6.
आलाप पद्धति
7.
आचार्य पूज्यपाद, सर्वार्थसिद्धि, 1/33.
8.
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, गोम्मट्टसार (जीवकाण्ड), गाथा-572. आचार्य मल्लिषेणसूरि, स्याद्वादमञ्जरी, 23/272 / 11.
9.
10. पञ्चाध्यायी, पूर्वार्द्ध, श्लोक
60.
11. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, पृ. 3/44.
12.
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-
श्लोकवार्तिक - 1/33/60 (आचार्य विद्यानन्दि).
13. आचार्य जयसेन, पंचास्तिकाय टीका, 16/35. 14. वही, 16/36.
15. आलापपद्धति - 3.
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16. नियमसार - टीका, गाथा - 15.
17. आचार्य वीरसेन, धवला - 4 / 1.5.4/337.
18. पंचाध्यायी, पूर्वार्द्ध, श्लोक - 63.
19. वही, 62
20. आचार्य जयसेन, पंचास्तिकाय-टीका 16/34/17. 21. आचार्य वसुनन्दि, श्रावकाचार, गाथा-25 22. तत्वार्थवार्तिक, 5/22.
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