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स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
(2) "गुणपर्यायाणामिह केचिन्नामान्तरं वदन्ति बुधाः।
अर्थो गुण इति वा स्यादेकार्थादर्थपर्याया इति च।।"19
अर्थः- कुछ विद्वान अर्थ और गुण दोनों के एकार्थवाची होने के कारण गुणपर्याय को ही अर्थपर्याय भी कहते हैं।
पर्याय के उक्त सभी भेदों का स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार हैं। (क) स्वभावपर्याय एवं विभावपर्याय
स्वभावपर्याय सभी द्रव्यों एवं सभी गुणों में होती है, किन्तु विभावपर्याय कतिपय द्रव्यों (मात्र जीव एवं पुद्गल द्रव्यों) और उन्हीं के कतिपय गुणों में ही होती है।20
द्रव्य या गुण की स्वाभाविक अवस्था को स्वभावपर्याय कहते हैं और स्वभाव से विपरीत अवस्था को विभावपर्याय कहते हैं। उदाहरणार्थ सिद्ध अवस्था, केवलज्ञान, परमाणु आदि स्वभावपर्यायें हैं और मतिज्ञान, स्कन्ध आदि विभावपर्यायें हैं। (ख) दव्यपर्याय एवं गुणपर्याय
द्रव्यों में होने वाले परिणमन को द्रव्यपर्याय कहते हैं और गुणों में होने वाले परिणमन को गुणपर्याय कहते हैं। यथा सिद्ध, मनुष्य, स्कन्ध आदि द्रव्यपर्यायें हैं और केवलज्ञान, मतिज्ञान, काला, पीला आदि गुणपर्यायें हैं। (ग) अर्थपर्याय एवं व्यंजनपर्याय
अर्थपर्याय अत्यन्त सूक्ष्म होती है। उसे आगम-प्रमाण से ही जाना जा सकता है। वह प्रत्येक द्रव्य के प्रत्येक गुण में प्रतिसमय होती रहती है तथा व्यंजनपर्याय स्थूल है, प्रकट है और चिरस्थाई है।
अर्थपर्याय एवं व्यंजनपर्याय का स्वरूप जैन-ग्रन्थों में इस प्रकार समझाया गया
"सहमा अवायविसया खणखइणो अत्थपज्जया दिट्ठा। वंजणजज्जाया पुण थूला गिरगोयरा चिरविवत्था।।121
अर्थः- अर्थपर्याय सूक्ष्म है, अवाय (ज्ञान) विषयक है- शब्द से नहीं कही जा सकती है और क्षण-क्षण में बदलती है; किन्तु स्वयंजनपर्याय स्थूल है, शब्दगोचर है- शब्द से कही जा सकती है और चिरस्थाई है। पर्याय और क्रिया में अन्तर
पर्याय को कुछ लोग सामान्य अपेक्षा से क्रिया भी कह देते हैं, पर वस्तुतः पर्याय एवं क्रिया में बड़ा अन्तर है। क्रिया हलन-चलन रूप परिणमन को ही कहते हैं, परन्तु पर्याय वस्तु के प्रत्येक सूक्ष्म से सूक्ष्म परिणमन का नाम है। श्रीमद्भट्टाकलंकदेव ने भी 'तत्वार्थवार्तिक' में इस विषय को इस प्रकार स्पष्ट किया है
"भावो द्विविधः परिस्पन्दात्मकः अपरिस्पन्दात्मकश्च। तत्र परिस्पन्दात्मकः क्रियेत्याख्यायते, इतरः परिणाम:।22
___अर्थात् भाव दो प्रकार के होते हैं- परिस्पन्दात्मक और अपरिस्पन्दात्मक। परिस्पन्दात्मक को क्रिया कहते हैं और अपरिस्पन्दात्मक को परिणाम (पर्याय)।
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