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________________ जैनधर्म सम्मत अहिंसा का प्रशिक्षण 149 सैद्धान्तिक, सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक मानदण्ड के उत्कर्ष का सूक्ष्मातिसूक्ष्म निदर्शन रागादीणमणुप्पाओ, अहिंसकत्तं त्ति देसियं समए। तेसिं चे उप्पत्ती, हिंसेत्ति जिणेहि णिद्दिट्ठा।। - समणसुत्तं, 153. (श्री जिनेन्द्र देव ने कहा है- राग आदि की अनुत्पत्ति 'अहिंसा' है और उनकी उत्पत्ति 'हिंसा' है।) इस गाथा में हुआ है। किन्तु दुर्भाग्य से ऐसे ऐश्वर्यवन्त सिद्धान्त कालचक्र के तीखे पद तले पददलित होने लगे हैं। दूसरे शब्दों में ऐसा भी कह सकते हैं कि- हमने स्वयं उन्हें काल चक्र के सामने पटक दिया है और बेचारा काल चक्र उन्हें रोंदने को मजबूर है। जो कुछ भी हुआ हो, गलती हमारी है। अहिंसक व्यक्तित्व के निर्माण में हम बौने पड़ गये हैं। जिस अहिंसक व्यक्तित्व की बहुत बड़ी आवश्यकता आज सम्पूर्ण संसार अनुभव कर रहा है वहीं हम अपने कदम आगे बढ़ाने के बजाय पीछे लौटा रहे हैं। और हम इतने पीछे पहुँच गये हैं कि वही बीभत्स वक्त हमारे समक्ष पुनः आ खड़ा है जिससे महावीर ने हमें उबारा था। भौतिक/वैज्ञानिकी तकनीकी संसाधनों में तरक्की से नयी किस्मों की हिंसाएँ भड़क उठी हैं। नित्य प्रति कितना लहू बह रहा है कत्लखानों में? कितनी मांगों का सिन्दूर, कितनी माताओं की गोदें उजड़ रही हैं सम्पूर्ण विश्व में फैले अर्थवाद और आतंकवाद से? कितने अजान-बेजुबान मारे-काटे-झोंके जा रहे हैं चापलूस राजनीति के हथकण्डों से? कोई गणित है? कोई हिसाब है? कितनी हजार चिताएँ रोज जल-बुझ रही हैं, उन्हीं के धुएँ से धरती और आकाश मानो ढक गया है। अतः समय रहते सावधान होने की आवश्यकता है। इस आग को अहिंसा के शीतल जल से बुझाना होगा। पौराणिक किम्वदन्ती है कि- 'शंकर प्रलय करते हैं' पर आज का अणु बम महाशंकर बनकर नृत्य करने को तैयार है, कुछ नाच तो दिखा भी चुका है। भयंकर अस्त्रों का निर्माण, स्टार द्वार की कल्पना सुरक्षा मुंह बाए ताक रही है। नक्षत्रीय-नाभिकीय युद्ध छिडने को व्याकल है। ऐसे नाजक दौर में जैन धर्म की सांस्कृतिक विरासत-अहिंसा का महत्व और भी बढ़ जाता है। लड़-झगड़कर, हिंसा के बल पर चाहे जो कुछ मिल जाय परन्तु सुख-शान्ति सकून से भरा आंगन एवं जीवात्मा का प्राणभूत तत्व धर्म कहीं-कभी भी नहीं मिल सकता। जीवन में अहिंसा को जीवित रखने के लिए कुछ रचनात्मक सोच और चर्चाओं का आदान-प्रदान आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है। यह कार्य कर सकती है मन की शक्ति और हृदय की निर्मलता। ये बहुमूल्य वृत्तियाँ असम्भव को भी सम्भव बनाने का प्रचण्ड पौरुष अपने में अन्तर्गर्भित किये जैन धर्म के उत्तुंग सांस्कृतिक मन्दिर के भव्य प्रांगण की दिव्य प्ररोचना हैअहिंसा। इसी 'अहिंसा का जैन धर्म सम्मत प्रशिक्षण' एटम जैसे दुर्दान्त दानव के अहंकार के मद में ऐंठे और बारूद के ढेर पर बैठे विश्व को परित्राण देने में पूर्णत: समर्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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