________________
148
स्वर्ण-जयन्ती गौरव-ग्रन्थ
भी आवश्यक है। नई समाज व्यवस्था के अन्तर्गत वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का भी विकास करना चाहिए।
3. राजनैतिक व्यवस्थाः अहिंसक राजनैतिक व्यवस्था का स्वरूप क्या हो? स्वच्छ राजनीति वह है जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन नहीं होता। जहाँ व्यक्ति और राष्ट्र का सम्बन्ध मात्र यान्त्रिक नहीं होता, व्यक्ति की स्वतंत्रता का मूल्यांकन किया जाता है। व्यक्ति की स्वतंत्रता आत्मानुशासित होती है। ऐसी स्वतंत्रता व्यक्तिगत विशेषताओं का संरक्षण है जो राष्ट्र की समृद्धि की आवश्यक शर्त है।
अहिंसक राजनीति की दूसरी विशेषता है, व्यक्ति निर्माण की दिशा में ठोस कार्यक्रम लागू करना। केवल हिंसा की रोकथाम करना और विधि-व्यवस्था कायम रखना राजनीति का काम नहीं है। जीवन्त राजनीति का लक्ष्य है- व्यक्ति का हित और मानव कल्याण। विकेन्द्रित राजनैतिक व्यवस्था हो ताकि दलगत राजनीति को अवसर न मिले। वर्तमान राजनीति में राजनीतिज्ञों के प्रशिक्षण के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। परिणामस्वरूप गुणवत्ता के स्थान पर सिर्फ संख्या इसका आधार रह गयी है। व्यवस्था परिवर्तन के लिए संगठनात्मक प्रशिक्षण की आवश्यकता है, जिसमें अनुसन्धान, योजना, कार्य के लिए तैयार होना, प्रचार, कार्य का प्रारम्भ, नेतृत्व आदि संगठन के विभिन्न पहलुओं के लिए प्रशिक्षण प्राप्त करना आवश्यक है। उपसंहारः
वस्तुतः जैन धर्म और अहिंसा एक तत्व के पर्याय जैसे ही हैं। 'मित्ती मे सव्वभूऐसु, वेरं मज्झंण केण वि' जैसे उदात्त सिद्धान्त की फलश्रुति दया, करुणा, प्रेम, सह अस्तित्व एवं सम्वेदनशीलता जैसे सर्वोत्कृष्टता के सम्पादक/सम्पोषक तत्व इसी की
पालथी मारे बैठे हैं। जैन धर्म की अहिंसा की सांस्कृतिक विरासत ने कर हिंसा. स्वार्थी हिंसा के प्रति बड़े जतन से, बड़े त्याग व पुरुषार्थ से गम्भीरतापूर्वक तार्किकी टंकारी आवाज उठायी और सरेआम, खुले मैदान में हो रही इन हिंसाओं के सिलसिले को तोड़ने के लिए जबर्दस्त क्रान्ति की तथा इस क्रान्ति को कामयाबी भी हासिल हुई थी। जैन धर्म की इस सांस्कृतिक विरासत ने यह अवबोध कराया कि
सव्वे जीवा वि इच्छति, जीविउं न मरिज्जिउं। तम्हा पाणवहं घोरं, णिग्गंथा वज्जयति ण।। जह ते न पिअं दुक्खं, जाणिअ एमेव सव्वजीवाणं। सव्वायरमुवउत्तो, अत्तोवम्मेण कुणसु दय।। जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सव्वजीवहिंसा, परिचत्ता अत्तकामेहिं।।
-- समणसुत्तं, 148, 150-151 इस सांस्कृतिक विरासत ने प्राणिमात्र को एक ऐसा सात्विक आकाश प्रदान किया जहाँ वे सकून से श्वांस ले सकें, अपनी स्वतंत्रता, अपनी अस्मिता पहचान सकें। जहाँ प्रत्येक जीवात्मा अपनी मानसिकता को मानवता के मानदण्ड पर माप सके। ऐसे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org