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________________ जैनधर्म सम्मत अहिंसा का प्रशिक्षण 147 परिवर्तन। हम प्रदूषण से चिन्तित हैं, त्रस्त हैं। सुविधावादी जीवन शैली प्रदूषण पैदा कर रही है। उस पर हमारा ध्यान ही नहीं जा रहा है। समाज सुविधा छोड़ नहीं सकता किन्तु वह असीम न हो- यह विवेक आवश्यक है। यदि सुविधाओं का विस्तार निरंतर जारी रहे, आडम्बर और विलासपूर्ण जीवन चलता रहे तो अहिंसा का स्वप्न यथार्थ में परिणत नहीं होगा। इच्छाओं की वद्धि से हिंसा को पल्लवन मिला है। जब तक इच्छा का संयम नहीं होगा, जीवन शैली में संयम को प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, तबतक अहिंसा का सार्थक परिणाम नहीं आ सकेगा। जीवन शैली परिवर्तन के लिए संयम, श्रम, स्वावलम्बन और व्यसन-मुक्त जीवन का सैद्धान्तिक और प्रायोगिक प्रशिक्षण अपेक्षित है। निम्नलिखित प्रायोगिक अभ्यास अहिंसा प्रशिक्षण में समाविष्ट है 1. अहिंसा की अनुप्रेक्षा 2. सत्य-अचौर्य की अनुप्रेक्षा 3. ब्रह्मचर्य की अनुप्रेक्षा 4. इच्छा-परिमाण/अपरिग्रह की अनुप्रेक्षा 5. स्वावलम्बन की अनुप्रेक्षा 6. व्यसन मुक्ति के प्रयोग 4. व्यवस्था परिवर्तनः अहिंसा प्रशिक्षण का चतुर्थ आयाम है- व्यवस्था परिवर्तन। व्यक्ति के आन्तरिक रूपान्तरण के साथ-साथ व्यवस्थागत परिवर्तन भी आवश्यक है। व्यवस्थाओं के मुख्य तीन पहलू हैं- (1) आर्थिक व्यवस्था, (2) सामाजिक व्यवस्था तथा (3) राजनैतिक व्यवस्था। 1. आर्थिक व्यवस्थाः अर्थ की प्रकृति में ही हिंसा है, अतः अर्थशास्त्र एवं आर्थिक व्यवस्था को पूर्णतः अहिंसक नहीं बनाया जा सकता; परन्तु इससे अपराध, क्रूरता, शोषण और विलासिता को अवश्य समाप्त किया जा सकता है। विकास की मात्र भौतिक अवधारणा का विकल्प, अहिंसक व्यवस्था से ही सम्भव है। अहिंसक व्यवस्था में- साधन-शुद्धि, व्यक्तिगत स्वामित्व की सीमा, उपभोग की सीमा, अर्जन के साथ विसर्जन तथा विलासिता की सामग्री के उत्पादन और आयात पर रोक की व्यवस्था का ईमानदारी के साथ व्यक्ति तथा सरकार दोनों को पालन करना होगा। इसके साथ-साथ अहिंसक तकनीक की खोज, अहिंसक तरीकों से कलह शमन सहकार का अर्थशास्त्र तथा स्वदेशी को आवश्यक स्थान देना होगा। 2. सामाजिक व्यवस्थाः अहिंसक आर्थिक व्यवस्था के अन्दर ही अहिंसक समाज-व्यवस्था का स्वरूप छिपा होता है। जिस समाज में आर्थिक शोषण होता है वह ज अहिंसक नहीं है। अहिंसक समाज का आधार अशोषण के लिए श्रम तथा स्वावलम्बन की चेतना और व्यवस्था का विकास, व्यवसाय में प्रामाणिकता तथा करता का वर्जन अनिवार्य है। समाज में अनेक प्रकार की हिंसा होती है। अहिंसक समाज में कुछ विशेष प्रकार की हिंसा का सर्वथा वर्जन हो। उदाहरणार्थ-आक्रामक हिंसा, निरपराध व्यक्तियों की हत्या, भ्रूण हत्या, जातीय-घृणा, छुआछूत आदि का व्यवस्थागत निषेध हो। ऐसे कृत्यों को महिमा मंडित करने वाले पत्र व मीडिया पर भी नियंत्रण हो। साम्प्रदायिक अभिनिवेश, मादक वस्तुओं का सेवन तथा प्रत्यक्ष हिंसा को जन्म देने वाली रूढ़ियों और कुरीतियों का वर्जन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012064
Book TitlePrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali Swarna Jayanti Gaurav Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhchand Jain
PublisherPrakrit Jainshastra aur Ahimsa Shodh Samsthan Vaishali
Publication Year2010
Total Pages520
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size13 MB
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