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जैनधर्म सम्मत अहिंसा का प्रशिक्षण
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तात्पर्य है संवेगों का परिष्कार करना, इनके स्थान पर नए संस्कार-बीजों का वपन करना। सैद्धान्तिक प्रशिक्षण के सूत्रः 1. लोभ का अनुदय
: शरीर और पदार्थ के प्रति अमूर्छा भाव
का प्रशिक्षण। 2. भय का अनुदाय
अभय का प्रशिक्षण (आत्मौपम्य भाव का प्रशिक्षण) शस्त्र निर्माण और शस्त्र व्यवसाय न करने की संकल्प-शक्ति
का प्रशिक्षण। 3. वैर-विरोध का अनुदय
: मैत्री का प्रशिक्षण। प्रतिशोधात्मक मनोवृत्ति
से बचने का प्रशिक्षण। 4. क्रोध का अनुदय
: क्षमा का प्रशिक्षण। 5. अहंकार का अनुदय
: विनम्रता का प्रशिक्षण, अहिंसक प्रतिरोध
एवं अन्याय के प्रति असहयोग का
प्रशिक्षण। 6. क्रूरता का अनुदय
: करुणा का प्रशिक्षण। 7. असहिष्णुता का अनुदय
: साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रशिक्षण, भिन्न
विचारों को सहने का प्रशिक्षण। - शरीर क्रिया मनोविज्ञान के अनुसार आचार और व्यवहार हमारे भावों (संवेगों) द्वारा नियमित होते हैं। हमारे भावों का नियमन रसायनों द्वारा होता है। ये रसायन अन्तःस्रावी ग्रन्थि-तंत्र द्वारा स्रावित होते हैं। उनका संचालन लिम्बिक-संस्थान (भाव-संस्थान) द्वारा होता है। ध्यान एवं अनुप्रेक्षा के प्रयोगों द्वारा इन रसायनों को प्रभावित कर संतुलित किया जा सकता है। इससे भावधारा, आचरण और व्यवहार में परिवर्तन घटित होता है।
अहिंसा के विकास के लिए निम्न निर्दिष्ट अनुप्रेक्षाओं का अभ्यास आवश्यक हैप्रायोगिक प्रशिक्षण के अभ्यास सूत्रः 1. लोभ का अनुदय
: अनासक्ति की अनुप्रेक्षा। 2. भय का अनुदय
: अभय की अनुप्रेक्षा। 3. वैर-विरोध का अनुदय
: मैत्री की अनुप्रेक्षा। 4. क्रोध का अनुदय
:: शान्ति की अनुप्रेक्षा। 5. अहंकार का अनुदय
: मृदुता की अनुप्रेक्षा। 6. क्रूरता का अनुदय
: करुणा की अनुप्रेक्षा। 7. असहिष्णुता का अनुदय
: सहिष्णुता की अनुप्रेक्षा। भावात्मक परिवर्तन के लिए अनुप्रेक्षा के प्रयोग बहुत सफल रहे हैं। इस प्रयोग में मस्तिष्क और पूरे शरीर को शिथिल कर सुझाव दिये जाते हैं, साथ-साथ रंगों का ध्यान भी किया जाता है। ध्वनि और रंग-ये दोनों अचेतन या अवचेतन मन को प्रभावित करते हैं। इनसे पुराने संस्कारों और अर्जित आदतों का क्षय हो जाता है। नये संस्कारों और नयी
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